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प्रथम अध्याय
__ हिन्दी भाषा टीका सहित।
य परिणामेइ तं पि य णं पूयं च सोणिय च श्राहारेति । तते णं भगवतो गोतमस्स तं मियापुत्तं दारयं पामित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिते ६ समुपज्जित्था - अहो णं इमे दागए पुरा पोराणाणं दुचिपणाणं दुप्पडिक्कताणं असुभाण पावाणं कड़ाणं कम्माणं पावगं फलवित्ति-विसेमं पच्चणुभवमाणे विहरति, ण मे दिट्ठा णरगावा णेरइया वा पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे नरय-पडिरूविय वेयणं वेति त्ति कट्ट मियं देवि आपुच्छति २ मियाए देवीए गिहारो पडिनिक्खमति २ मियग्गामं णगरं मझमज्मेणं निग्गच्छति २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आयाहिण-पयाहिणं करेति, करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं तुम्भेहि अमणुएणाए समाणे मियग्गाम णगरं मझमझेणं अणुपविसामि २ जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागते तते णं सा मियादेवी मम एज्जमाणं पासति २ हवा. तं चेव सव्वं जाव पूयं च सोणियं च
आहारेति । तते णं मम इमे अज्झथिते ६ समुप्पज्जित्या, -अहो णं इमे दारए पुरा जाव विहरति ।
पदार्थ-तते णं- तदनन्तर । से मियापुरते दारए-उस मृगापुत्र बालक ने । तस्स विपुलस्सउस महान् । असण-पाण-खाइमसाइमस्स-अशन, पान, खादिम और स्वादिम के । गंधेणं-- गन्ध से। अभिभृते समाणे-अभिभूत-आकृष्ट तथा । तंसि विपुलंसि-उस महान् । असण-पाण-खाइमलाइ मंसि-अशन, पान, खादिम और स्वादिम में। मुच्छिए - मूर्छित हुए ने। तं विपुलं-उस महान् । असणं ४-अशन, पान, खादिम और स्वादिम का । आसपणं-मुख से । श्राहारेति-आहार किया, और । खिप्पामेव-शीघ्र ही। विद्धंसेति-वह नष्ट हो गया. अर्थात जठराग्नि द्वारा पचा दिया गया ततो पच्छा-तदनन्तर वह । पूयनाए य-पूय-पीब और । सोणियसाए-शोणित-रुधिर रूप म । परिणामेति-परिणमन को प्राप्त हो गया और उसी समय उस का उसने वमन कर दिया। त यणं-और उस वान्त । पूर्य च-पीब और । शोणियं च पि-शोणित-रक्त का भी वह मृगापुत्र । श्राहारेति - आहार करने लगा, अर्थात् उस पीब और खून को वह चाटने लगा। तते णं - उस क पश्चात् । भगवतो गातमस्स-भगवान् गौतम के । तं मियापुत्तं दारयं-उस मृगापुत्र बालक का । पासित्ता- देख कर । अयमेयारूवे- इस प्रकार के । अज्झत्थिते ६- विचार । समुप्पज्जित्था-उत्पन्न हुए। अहोणं - अहो अहह !। इमे दारए- यह बालक । पुरा-पहले । पोराणाणं-प्राचीन । दुच्चिरणाणं-दुश्चीर्ण-दुष्टता से उपार्जन किये गये । दुप्पड़िकंताणं-दुष्प्रतिक्रान्त-जो धार्मिक क्रियानुष्ठान से नष्ट नहीं किये गये हों । असुभाणं-अशुभ । पावाणं-पापमय । कडाणं कम्माणं-किये हुए कर्मों के । पावगं-पापरूप। फजविनिविसेसं-फलवृत्ति विशेष - विपाक का । पच्चणुभवमाणे- अनुभव करता हुआ । विहरति-समय व्यतीत कर रहा है । मे-मैंने । णरगा वा - नरक अथवा । णेरइया वानारकी । ण दिट्ठा-नहीं देखे । अयं पुरिसे-यह पुरुष-मृगापुत्र । नरयपडिरूवियं - नरक के प्रतिरूपसदृश । पच्चक्खं - प्रत्यक्ष-रूपेण । वेयणं-वेदना का। वेएति-अनुभव कर रहा है। ति कटु
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