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श्री विपाक सूत्र
प्रिथम अध्याय
मूलार्थ-तब भगवान् गौतम स्वानो ने मृगादेवी को कहा -- हे देवानुप्रिये ? अर्थात् हे भद्रे ! इस बालक का वृत्तान्त मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने मेरे को कहा था, इसलिये मैं जानता हूँ । जिस समय मृगादेवी भगवान् गौतम के साथ संलाप-संभाषण कर रही थी. उसी समय मृगापुत्र बालक के भोजन का समय हो गया था । तब मृगादेवी ने भगवान् गौतम स्वामी से निवेदन किया कि हे भगवन् ! आप यहीं ठहरें, मैं आप को मृगापत्र बालक को दिखलाती हूँ इतना कहकर वह जिस स्थान पर भोजनालय था वहां आती है अाकर प्रथम वस्त्र परिवर्तन करती है-वस्त्र बदलतो है, वस्त्र बदल कर काष्ठशकटी-काठ की गाड़ी को ग्रहण करती है, तथा उस में अशन, पान, खादिम और स्वादिम को अधिक मात्रा में भरती है तदनन्तर उस काष्ठशकटी को बैंचती हुई जहां भगवान् गौतम स्वामी थे वहां आती है आकर उसने भगवान् गौतम स्वामी से कहा भगवन् ! आप मेरे पीछे आएं मैं आप श्री को मृगापुत्र बालक को दिखलाती हूँ । तर भगवान् गौतम मृगादेवी के पीछे २ चनने लगे । तदनन्तर वह मृगादेवी काष्ठ-शकटी को बँचती हुई जहां पर भूमिगृह था वहां पर आई, आकर चतुष्पुट-चार पुट वाले वस्त्र से अपने मुख को - अर्थात् नाक को बान्धती हुई भगवान् गौतम स्वामी से बोली-भगवन् ! आप भी मुख के वस्त्र से अपने मुख को बांधले अर्थात् नाक बान्ध लें । तदनन्तर भगवान् गौतम स्वामी ने मृगादेवी के इस प्रकार कहे जाने पर मुख के वस्त्र से अपने मुख-नाक को बान्ध लिया। तत्पश्चात् मृगादेवी ने परांमुख हो कर (पीछे को मुख करके) जब उस भूमिगृह के द्वार-दरवाजे को खोला तब उस में से दुर्गन्ध आने लगी, वह दुर्गन्ध मृत सर्प आदि प्राणियों की दुर्गन्ध के समान ही नहीं प्रत्युत उस से भी अधिक अनिष्ट थी।
टीका-मृगादेवी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् गौतम स्वामी ने रहस्योद्घाटन के सम्बन्ध में जो कुछ कहा उसका विवरण इस प्रकार है
गौतम स्वामी बोले-महाभागे ! इसी नगर के अन्तर्गत चन्दन पादप नामा उद्यान में मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान हैं, वे सर्वज्ञ अपच सर्वदर्शी हैं, भूत भविष्यत् और वर्तमान तीनों काल के वृत्तान्त को जानने वाले हैं। वहां उन की व्याख्यान-परिषद् में आये हुए एक अन्धे व्यक्ति को देखकर मैंने प्रभु से पूछा-भदन्त ! क्या कोई ऐसा पुरुष भी है जो कि जन्मान्ध होने के अतिरिक्त जन्मान्धकरूप ( जिस के नेत्रों की उत्पत्ति भी नहीं हुई है। भी हो ? तब भगवान् ने कहा हां, गौतम ! है। कहां है भगवन् ! वह पुरुष ? मैंने फिर उन्हें पूछा । मेरे इस कथन के उत्तर में भगवान् ने तुम्हारे पुत्र का नाम बतलाया और कहा कि इसो मृगाग्राम नगर के विजयनरेश का पुत्र तथा मृगादेवी का आत्मज मृगापुत्र नामक बालक है जो कि जन्मान्ध और जन्मान्धकरूप भी है इत्यादि । अतः तुम्हारे पुत्र-विषयक मैंने जो कुछ कहा है वह मुझे मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से प्राप्त हुआ है । भगवान् का यह कथन सर्वथा अभ्रांत एवं पूर्ण सत्य है. उस के विषय में मुझे अणुमात्र भी अविश्वास न होने पर भी केवल उत्सुकतावश मैं तुम्हारे उस पुत्र को देखने के लिये यहां पर आ गया हूँ । आशा है मेरे इस कथन से तुम्हारे मन का भलीभांति समाधान हो गया होगा। यह था महाराणी मृगादेवी के रहस्योद्घाटन सम्बन्धी प्रश्न का गौतम स्वामी की ओर से दिया गया सप्रेम उत्तर, जिस की कि उसे अधिक आकांक्षा अथच जिज्ञासा थी।
भगवान् गौतम स्वामी और महाराणी का आपस में वार्तालाप हो ही रहा था कि इतने में मृगापुत्र के भोजन का समय भी हो गया । तब मृगदेवी ने भगवान् गोतम स्वामो से कहा कि भगवन् ! आप यहीं विराजे, मैं अभी आप को उसे (मृगापुत्र को) दिखाती हूँ, इतना कहकर वह भोजन-शाला की ओर गई,
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