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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३०) श्री विपाक सूत्र [प्रथम अध्याय से विभोर होते हुए चन्दनपादा उद्य न को ओर जा रहे हैं अाज हमारे अहोभग्य से श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का इस नगर में पधारना हुआ है हमें उन के पुण्य दर्शन का अलभ्यलाभ होगा, उन का पनीत दर्शन चतुर्गति रूप संसार समुद्र से निकाल कर, कर्मजन्य दुखों से सुरक्षित कर, एवं जन्म मरण के बन्धन से छड़ा कर निष्कर्म बनादेने वाला है । उन के पनीत कथामृत का पान कर के हमारे विकल हृदयों को पूर्ण शांति मिलेगी। इस प्रकार को विशुद्ध भावना से भावित प्रत्येक नर नारी एक दूसरे से आगे निकलने का प्रयत्न कर रहा है। नगर के हर एक विभाग व मार्ग में भो यही चर्चा हो रही है, अर्थात् पुरुषसिंह, पुरुषोत्तम श्री महावीर स्वामी ग्रमानुग्राम विहार करते हुए आज नगर के बाहिर चन्दन पादप उद्यान में पधारे हैं यह हमारे नगर का परम अहोभाग्य है ! इसप्रकार जनता आपस में कह रहा है । सारांश यह है कि वीर प्रभु क पधारने का सारे नगर में आनन्दमय कोलाहल हो रहा है । दर्शनार्थ जाने वाले सद्गृहस्थों में से कई एक कहते हैं कि हम गृहस्थाश्रम का परित्याग कर अनगार (साधु) वृत्ति को धारण करेंगे । कुछ कहते हैं हम तो देशविरति (श्रावक) धर्म को अंगीकार करेंगे। क्योंकि साधु वृत्ति का आचरण अत्यन्त कठिन है । हम में उस के यथावत् पालन करने की शक्ति नहीं है तथा कितने एक भगवान् की भक्ति के कारण जा रहे हैं । कई एक शिष्टाचार की दृष्टि से पहुँच रहे हैं तात्पर्य यह है कि नगर के हर एक छोटे बड़े व्यक्ति के हृदय में भगवान् के दर्शन की लालसा बढ़ो हई है। तदनसार नागरिक स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त हो, यथाशक्ति वस्त्राभरणादि पहन और सुगन्धित पदार्थों से सरभित हो कर पृथक पृथक यानादि के द्वारा तया पैदल उद्यान की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। उन का मन वीर प्रभु के चरण कमलों का ग बनने के लिये अातुर हो रहा है। पाठक, अभी उस जन्मांध व्यक्ति को भूले न होंगे कि जो मृगाग्राम में भिक्षावृत्ति के द्वारा अपना जीवन निर्वाह कर रहा है। वह भिक्षार्थ नगर में घूम रहा है। उद्यान की ओर जाने वाले नागरिकों के उत्साहपूर्ण महान् शब्द को सुन कर उस ने अपने साथी पुरुष को पूछा कि महानुभाव ! क्या आज मृगाग्राम में कोई इन्द्रमहोत्सव है ? अथवा स्कन्द या रुद्रादि का महोत्सव है ? जो कि ये अनेक उग्र, उग्रपुत्र आदिक नागरिक लोग बड़ी सजवा से आनन्द में विभोर होते हुए चले जा रहे हैं ? यहां पर “जणलदं च जाव सुणेता" इस पाठ में उल्लखित “जाव-यावत्" पद से औपपातिक सत्रीय २७ वे सत्र में पठित पाठ का प्रारम्भिक अंश ग्रहण करना जिस में नगर के उत्साहपूर्ण वातावरण का सुचारु वर्णन है। "इंदमहे इ वा जाब निग्गच्छति' और "इंदमहे जाव निग्ग" इस पाठों के "जाव-पावत्" पद से श्री राजप्रश्नीय उपांग के उत्तरार्धगत १४८ वें सत्र के प्रारम्भिक पाठ का ग्रहण करना, जिस में इन्द्रमहोत्सव स्कन्दमहोत्सव, रुद्रमहोत्सव, मुकुन्दमहोत्सव इत्यादि १८ उत्सवों का निर्देश किया गया है तथा वहां उद्यान में जाने वाले नागरिकों को अवस्था का भी बड़ा सुन्दर चित्र खींचा हैं । उस जन्मान्ध व्यक्ति के उक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए उस के साथ वाले पुरुष ने कहा कि महानुभाव ! ये नागरिक लोगों के झुण्ड किसो इन्द्र या स्कन्दादि महोत्सव के कारण नहीं जा रहे किन्तु आज इस नगर के बाहर चन्दननादप उद्यान में श्रमण भगवान् महावोर स्वामो का पधारना हुया है, ये लोग उन्हीं के दर्शनार्थ उद्यान को ओर जा रहे हैं ।तब तो हम भो वहां चलंगे, वहां चलकर हम भी भगवान् को पयु. पासना से अपने आत्मा को पुनोत बनाने का अलभ्य लाभ प्राप्त करेंगे, इस प्रकार उस जन्मान्ध व्यक्ति ने बड़ी उत्सुकता से अपनो हार्दिक लालसा को अभिव्यक्त किया। तदनन्तर वह अपने साथी पुरुष के साथ For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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