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प्रथम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित
[१९
समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पएणत्ता,तंजहा–मियाउत्ते (१) उज्झियत (२) अभग्ग (३) सगड़े (४) वहस्सती (५) नंदी (६) उंबर (७) सोरियदत्ते य (८) देवदत्ता य (6) अंजू य (१०) । जति णं भंते ! समणेणं जाव सपत्तेणं दुहविव गाणं दस अझ पणा पएणता, तंजहा–मियाउत्ते जाव अंजू य । पदमस्य णं भंते ! अझयणस्स हवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठ पएणते ? तते णं से सुहम्मे अणगारे जंबु अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू !।
पदार्थ -जति - यदि । णं-यह पद वाक्य-सौन्दर्य के लिये है, ऐसा सर्वत्र जानना । भंते !हे भगवन् ! । समणेणं जाव संपत्तेणं-यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने । पराहावागरणाणं. प्रश्न-व्याकरण । दसमस्य-दशम। अंगस्त-अंग का । अयम? -यह अर्थ . पराणते - प्रतिपादन किया है । भंते !- हे भगवन् ! । विवाग यस्स -विपाकश्रुत । एक्कारसमस्स -एकादशवें । अंगस्सअङ्ग का। जाव -यावत् । संपतेणं मोक्ष - संप्राप्त। समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने । के-क्या । अटे- अर्थ । पर गत्ते-प्रतिपादन किया है । तते णं-तदनन्तर । अज्जसुहम्मे अणगारे-पाय सुधर्मा अनगार ने । जम्बु अ गारं- जम्बू नामक अनगार को । एवं - इस प्रकार । वयासी-कहा। जब!-हे जम्बू ! । खलु -निश्चय से। एवं-इसप्रकार । जाव-यावत । संपत्तेणं-- मोक्षसंप्राप्त सतणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने। विवागसुयस्य -विपाकश्रुत । एक्कारसमस्सएकादशवें। अंगरस-अङ्ग के। दो-दो । सुयखंधा-श्रुतस्कन्ध । पराणत्ता- प्रतिपादन किये हैं। तंजहा- जैसे कि । दुहविवागा य - दुःख-विपाक तथा । सुहविवागा य-सुखविपाक । भंते !हे भगवन् ? । जति णं - यदि । जाव - यावत् । संपत्तेणं -मोक्ष-संप्राप्त । समणेणं -श्रमण भगवान महावीर ने । विवागसुयस्य - विपाकश्रुत नामक । एक्कारसनस्स - एकादशवें । अंगस्त - अङ्ग के । दो - दो । सुयबंधा-श्रुतस्कन्ध । पराण ता - प्रतिपादन किये हैं। तंजहा- जैसे कि । दुइविवागा य-दुःखविपाक तथा। सुहविवागा य - सुखविपाक। भंते !-हे भगवान् । पढमस्सप्रथम । दुहविवागाणं-दुःखविपाक नामक । तुयखंधस्त-श्रुतस्कन्ध के । जाव - यावत् । संपत्तेणंमोक्ष को प्रात हुए । समणेण-श्रमण भगवान् महावीर ने। कइ-कितने । अज्झयणा - अध्ययन । पराणत्ता–प्रतिपादन किये हैं । तते णं-तदनन्तर । अज्जसुहम्मे अणगारे-प्रार्य सुधर्मा अनगार ने जम्बु अणगारं - जम्बू अनगार को। एवं -इस प्रकार । वयासो-कहा । जम्बू !-हे जम्बू !। खल - निश्चय से । एवं-- इस प्रकार । जात्र- यावत् । संपत्तेणं-मोक्षसम्प्राप्त । समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने । दुहविवागाणं -- दुःख - विपाक के । दस-दश । अझयणा-अध्ययन । पराणता- प्रतिपादन किये हैं। तंजहा - जैसे कि । मियाउरो य -मृगापुत्र । (२) उझियते-उज्झितक । (२) अभग्ग-अभग्न । (३) सगड़े - शकट । (४) वहस्सती-वृहस्पति । (५) नंदीनन्दी । (6) उम्बर-उम्बर । (७) सोरियदत्ते य - शौरिक दत्त । (८) देवदत्ता य-देवदत्ता। (8) अंजू य -तथा अञ्जू । (१०) भंते ! - हे भगवन् ! । जति णं- यदि । जाव- यावत् । संपत्तेणंमोक्षसम्प्राप्त । समणेणं-श्रमण भगवान् महावीर ने । दुहविवागाणं-दुःखविपाक के। दस - दश अज्झयणा - अध्ययन ! पण्णता -- कथन किये हैं । तंजहा - जैसे कि । मियाउत्ते- मृगापत्र । जाव
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