________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१२]
www.kobatirth.org
श्री विपाक सूत्र
[ प्रथम अध्याय
जात का अर्थ प्रवृत्त और उत्पन्न दोनों हो सकते हैं । यहां जात अर्थ, विश्वास करना श्रद्धा कहलाता है, लेकिन यहां श्रद्धा इच्छा है । तात्पर्य यह हुआ कि जम्बू' स्वामी की प्रवृत्ति इच्छा में हुई । किस प्रकार की इच्छा में प्रवृत्ति १ इस प्रश्न का समाधान यह है कि जिन तत्त्वों का वर्णन किया जायगा, उन्हें जानने की इच्छा में जम्बूस्वामी की प्रवृत्ति हुई । इस प्रकार तत्त्व जानने की इच्छा में जिस की प्रवृत्ति हो उसे जातश्रद्ध कहते हैं ।
जायसड्ढे ( जात श्रद्धः ) का अर्थ प्रवृत्त है । रहा श्रद्धा का
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
जातसंशय अर्थात् संशय प्रवृत्ति हुई। यहां इच्छा की प्रवृत्ति का कारण बतलाया गया है, जम्बूस्वामी की इच्छा में प्रवृत्ति होने का कारण उन का संशय है, क्योंकि संशय होते से जानने की इच्छा होती है । जो ज्ञान निश्चयात्मक न हो, जिस में परस्पर विरोधी अनेक पक्ष मालूम पड़ते हों वह संशय कहलाता है । जैसे - यह रस्सी है या सर्प ? इस प्रकार का संशय होने पर उसे निवारण करने के लिये यथार्थता जानने की इच्छा उत्पन्न होती है जम्बूस्वामी को तत्त्वविषयक इच्छा उत्पन्न हुई क्योंकि उन्हें संशय हुआ था ।
२
संशय संशय में भी अन्तर होता है, एक संशय श्रद्धा का दूषण माना जाता है और दूसरा श्रद्धा का भूषण । इसी कारण से शास्त्रों में संशय के सम्बन्ध में दो प्रकार की बातें कही गई हैं । एक जगह कहा है - "संशयात्मा विनश्यति " शंका-शोल पुरुष नाश को प्राप्त हो जाता है । दूसरी जगह कहा है - " न संशयमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति । " संशय उत्पन्न हुए बिना - संशय किए बिना मनुष्य को कल्याण - मार्ग दिखलाई नहीं पड़ता । तात्पर्य यह है कि एक संशय आत्मा का घातक होता है और दूसरा संशय आत्मा का रक्षक होता है । जम्बूस्वामी का यह संशय अपूर्व ज्ञान - ग्रहण का कारण होने से आत्मा का घातक नहीं है प्रत्युत साधक है ।
“जायको उ हल्ले - जात कुतूहल. " । जम्बू स्वामी को कौतूहल हुआ, उत्पन्न हुई । उत्सुकता यह कि मैं आर्य श्री सुधर्मास्वामी से प्रश्न करूगा वस्तुतत्त्व समझावेंगे, उस समय उन के मुखारविन्द से निकले हुए अमृतमय वचन कितना आनंद होगा ! ऐसा विचार करके जम्बूस्वामी को कौतूहल हुआ ।
यहां तक "जायसड्ढे, जायसंसए" और "जायकोउहल्ले", इन तीनों पदों की व्याख्या की गई है इससे आगे कहा गया है – “उत्पन्नसड्ढे, उप्पन्न संसर, उप्पन्नको उहल्ले" अर्थात् श्रद्धा उत्पन्न हुई संशय उत्पन्न हुआ और कौतूहल उत्पन्न हुआ ।
उनके हृदय में उत्सुकता
तब वे मुझे पूर्व
श्रवण करने में
(१) भगवती सूत्र में तो श्री गौतम स्वामी का और भगवान् महावीर का नामोल्लेख किया हुआ है परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में श्री जम्बू स्वामी का और श्री सुधर्मा स्वामी का प्रसंग चल रहा है, इसलिये यहां श्री जम्बू स्वामी का और श्री सुधर्मा स्वामी का नामोल्लेख करना ही उचित प्रतीत होता है ।
For Private And Personal
(२) भगवान् महावीर का सिद्धांत है कि – “चलमाणे चलिए " अर्थात् जो चल रहा है वह चला । यहां — 'चलता है' यह कथन वर्तमान का बोधक है और 'चला' यह अतीत काल का । तात्पर्य यह है कि- 'चलता है' यह वर्तमान काल की बात है, और 'चला' यह अतीत काल की । यहां पर संशय पैदा होता है कि जो बात वर्तमान काल की है, वह भूतकाल की कैसे कह दी गई ? शास्त्रीयदृष्टि से इस विरोधी काल के कथन को एक ही काल में बतलाने से दोष आता है, तथापि वर्तमान में अतीत काल का