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________________ 14 32 त्वेनप्रारुतत्वाद्गुणान्वयात् // धर्मांतरतिरोभावाजडमब्रह्मजासते // 15 // तस्याअप्यंशभूतत्वाजडेब्रह्मसमन्वयं // तन्मूलकेसदंशेनवक्तितत्तुसमन्वयात् // 16 // जीवास्तु निर्गुणाःस्वांशाआरताःप्रारुतैर्गुणः // सृष्ट्यारम्भेनारदीयेपंच रात्रेस्फुटतथा // 17 // त्रिविधाजीवसंघास्तुदेवमानुषदानवाः // तत्रदेवामुक्तियोग्यामानवेषूत्तमाअपि // 18 // म ध्यमामानुषायेतुर्टेतियोग्याःसदेवहि / / अधमानिरयायैवदानवास्तुतमोलयाः // 19 // श्रुतावपित्रयःप्राजापत्याइति / कानदुच्यते // तेदंतःकरणादीनितादृशानिभवंतिहि // 20 // जीवाःकर्माणिकर्वतिस्वभावानुगुणान्यतः // फलंवांच्छंतिता दक्षप्राप्यमुख्यतितंत्रते // 21 // सत्वाद्युपाधिमादायविष्णुर्ब्रह्माशिवस्तथा // तत्तन्नियमनायाभूस्थित्यादिकतयेपृथक // 22 // (स्कंध 1 अ० 2 श्लो. 23 ) सत्वरजस्तमइतिप्रकतेगुणास्तैर्युक्तःपरःपुरुषएकइहास्यधत्ते // स्थित्या। दयेहरिविरंचिहरेतिसंज्ञाःश्रेयांसितत्रखलुसत्त्वतनोनृणांस्युः // 23 // चिच्छक्तिःपुरुषोनारायणोब्रह्माततोऽभवत् // ब्र मादिद्वारकःसर्गःपुराणादोपरिस्फुटः // 24 // ( स्कं. 1 अ. 3 श्लो. 1 ) जगृहेपौरुषरूपंजगवान्महदादिभिः॥ संभूतंषोडशकलमादौलोकसिसक्षया / / 25 // यस्यांजसिशयानस्ययोगनिद्रांवितन्वतः // नाभिहदांबुजादासीद्ब्रह्मा विश्वसृजापतिः // 26 // गुणाविलीयजायतेशून्यवत्प्रकृतौलये // प्रकृतिीयतेऽव्यक्तपुरुषश्वतथास्मृतिः // 27 // 1 प्रतिमूलकेजडे 2 श्लोकयमिदंनिबंधेपिसर्वार्थनिर्णयेउदात्तं 3 साविकराजसतामसाः 1 मध्यमलोकेषुभ्रमणं 5 तत्रैवाव। वारणभंगोक्तायां 6 सात्विकादि जीवानांअंतःकरणेंद्रियाणिसाचिकादीनि 7 स्वगुणानुरूपफलेषु८ क्रमान्सात्विकादिनियमनाय 9 अक्षरे
SR No.020884
Book TitleVedant Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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