________________ म्यसंयुक्तस्नानस्पर्शादिकर्मसु।। यद्विहारास्पदंदव्यास्तद्रूपंच निरूप्यते // 71 // यात्रिकैःपूज्यतेदेव्यभेदबुत्थ्याफलेप्सु। भिः॥ मार्यादिकन विधिनायत्तेभ्योभोगमोक्षदम् // 72 // रूपंतीर्थात्मकंतस्यास्तदाध्यात्मिकमुच्यते // तस्थिताम तिमतीदेवीस्यादाधिदैविकी॥७३॥ सितमकरनिषण्णांशुभ्रवर्णात्रिनेत्रांकलशजलजहस्तामौक्तिकै षितांगी। अभयव रदपाणिसेंदुकोटीरजटांवसितसितदुकलांजान्हवींतांनमामि।७४॥शेरच्चंद्रश्वेतांशशिशकलश्वेतालमकटांकरैःकंभांजोजे / वरजयनिरासौचदधती // सुधाधाराकाराभरणवसनांशुधमकरस्थितांत्वांयेध्यायंत्युदयतिनतेषांपरिभवः // 75 // इ त्यायुक्तस्वरूपायाक्कंचिद्भक्त्यैवदृश्यते // सुलझानाखिलानांसतिफलंतीर्थरूपतः // 76 // आविर्भावीतिरोभावीशोक मोहादिदषितः // पदाववानप्रपंचस्तरूपस्यादाधिभौतिकं // 77 // योगीतबहमाहात्म्यःसकाभैर्मोक्षकामकैः // सेव्य मानश्वफलदोधामाध्यात्मिकमक्षरः // 78 // पुरुषोत्तमआनंदाकारःस्यादाधिदैविकः // भक्तिमात्रेणलभ्यःसो 11गमोक्षीततोऽक्षरात् // 79 // श्रद्धालःसलिलंतीर्थपश्यन्कल्याणवान्भवेत् // तथाऽक्षरात्मकंपश्यन्विश्वज्ञानीविम व्यते // 80 // ( स्कंध 12 अ०६ श्लो०३२)परंपर्दवैष्णवमामनंतितयन्नेतिनेतीत्यर्तंदुत्सिसक्षवः / विसृज्यदौरात्म्य 1 . 1 देवीरूपं 2 लोकशास्त्राभ्यां 3 निरतिशयमशून्येन तीर्थागपूजाप्रकारेण 4 तीर्थजले 5 गंगालहरीश्लोकोऽयं 6 प्रवाहादौ 7 भक्त्या उभ्यस्त्वनन्ययेत्यादिवाक्यैः 8 अततीत्यतदस्थिरंसंसारादिकं अथवातद्ब्रह्मततोन्यदतत्