________________ नाणुरचलैकार्थतान्यथा // 29 // शरीरेगुणतोव्याप्ने क्वचिद्यापकतोदिता // ब्रह्मवद्यापकत्वेतूक्तान्यश्रुत्यादिबाधा नं 30 // शांकाराणांमतेकर्तनप्रपंचस्योक्तच // धम्माकारक्रियात्यंताभाववद्ब्रह्मकथ्यते ॥३१॥मायायांप्रतिब। बोऽस्यतत्क"शबलाभिधः। प्रतिबिंबस्त्वविद्यायांतस्यजीवोभिधीयते।। 32 // तद्पोपाध्यवच्छिन्नेचैतन्येब्रह्मरूपिणि अथवातीघटमठोपहिताकाशवत्कृतौ // 33 // सत्त्वे तुशुद्धमलिनेमायाऽविद्येअनादिमे // तत्रावच्छिन्नपक्षस्तुसंक्षेपेण / निराकतः // 34 // दृश्यतेप्रतिबिंबस्तुनवाय्वादेनिराकतेः // नदृष्टोमलिनेप्येषमृदादावन्यथाभवेत् / / 35 // चेत्ता लणस्तत्रकिनस्याद्वायुदारुणोः॥ अलीकंप्रतिबिंबंनजीवस्यालीकताक्कचित् // 36 // श्रौतोगुहायनिकस्यांप्रवेश तिद्वयोः॥ इत्यादितत्त्वदीपेचोक्तं विद्वन्मंडनेबहु // 37 // अविद्योपाधिरचितंजीवत्वमिनितेजगः ॥पारतंत्र्यंभगवतोद्वैता पत्तिश्वतन्मते // 38 // अंशानांजीवभावस्त्वीशेच्छयोक्तप्रकारया // शक्याविद्योपाधिनातुसंसारइतिवैदिकं // 39 // तस्मादेवोद्गमस्तस्मिल्लयोमध्येचदृश्यते // कार्यात्मनेच्छयाभेदोजडजीवांतरात्मनां // ४०॥शुद्धाद्वैतमतःसिद्धंश्रुतिस्म त्यादिसंमतं // द्वीतंद्वयोरितंज्ञानंतद्वैतंद्वीतमेवयत् // 41 // कार्यकारणरूपंतदीशजीवात्मकंतथा / नामरूपात्मकंचेतित्रि विधंसमुदाहृतं / / 42 द्विविधंदूषितंतत्राप्ययेतद्रूषयिष्यते // नामरूपात्मकंद्वैतंशांकराणांयथोदितं॥ 43 // अस्तिभाति स्थावचलपदयोरेकार्थकतयापौनरुक्त्यं 2 चैतन्येन 3 निर्गुणस्य ४अयनंइतंभावतः 5 गन्यर्थकधातूनांज्ञानार्थकतायाअपिस्वीकाराज्ज्ञानमित्यर्थः