________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir // 17 // म्॥अश्म्मन्नू म्पव॑तेशिश्रियाणामयऽओषधीब्भ्योवनस्पति पू.अ. // 148 // भ्योअधिसम्भृतम्पयः॥तान्नऽइषमूर्जन्धत्तमरुतत्सबरराणाs अश्म्मस्तेक्षुन्मर्यितऽऊ>न्द्विष्म्मस्तन्तेशुगृच्छतु॥१॥इमामे।। अग्नऽइष्टकाधेनवः सन्त्वेकाचदर्शचदर्शचशुतञ्चशतञ्चसहस्रञ्च सहस्रञ्चायुतंञ्चायुतंञ्चनियुतञ्चनियुञ्चिप्रयुतञ्चार्बुदञ्चन्यर्बुदञ्चस / मुद्रश्चमाञ्चान्तच्चपरार्द्धश्चैतामैऽ अगाऽइष्टकाधेनवःसन्त्व। मुत्रामुष्मिँल्लोके // 2 // ऋतवस्त्थ / ऽवृधऽऋतुष्टास्त्थान RCHAKRAHASSANA // 148 // For Private And Personal