________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandit संहि. तस्म्माऽअरङ्गमामवोयस्युक्षयायुजिन्वथ // आपोजनयथाचनः | ॥५२॥मित्रसुत्सृज्य। पृथिवीम्भूमिञ्चज्योतिपासह॥सुजातजा है। तवैदसमयक्ष्मायत्त्वाससृजामिप्प्रजाब्भ्यः॥५३॥ रुद्राश्सस ज्य। पृथिवीम्बृहज्योतित्समीधिरे // तेषाम्भानुरजनुऽइच्छुको है। / देवपुरोचते॥५४॥सह-सृष्टांवसुभिः // सन्सृष्टांवसुभीरुद्वैधीरैः / / कर्मण्ण्याम्मृदम् // हस्ताब्भ्याम्मृवीकृत्त्वासिनीवालीकृणोतुता // 8 // म् // 55 // सिनीवालीसुकपर्दा / सुकुरीराखौपशा // सातुब्भ्यमदि For Private And Personal