________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संहि. उ. अ. // 106 // // 35 // GROGRECTORAGARCANCLCBGANGA // 3 // अश्वत्थेवः ॥अश्वत्थेवोनिषद॑नम्पुर्णेवोवसतिष्कृता // गोभाजऽइकिलासथयत्सनथुपूरुपम्॥४॥ सविताते।शरीरा णिमातुरुपस्त्थऽआवपतु॥तस्म्मैपृथिविशम्भव ॥५॥प्रजापतौ त्वा / देवतायामुपौदकेलोकेनिदधाम्म्यसौ // अपनशोशुंचदुघ / म् ॥६॥परम्मृत्यो॥ परम्मृत्योऽअनुपरहिपन्थांय्यस्तैऽअन्य। इतरोदेवयानात् // चक्षुष्म्मतेशृण्वतेतेबवीमिमान:प्रजाजरी 3 // 106 // रिषोमोतबीरान्॥७॥ शंबात / शहितेणिक्शन्तैभवन्त्वि For Private And Personal