________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kishsagarsuri Gyanmandit उ. अ. // 28 // NAGARICICROGRUARCLICROGRICKAGA शितिपृष्ठानामाहितत्सहस्रेण प्रवर्त्ततेमित्रावरुणेदश्यहोत्रम हतोबृहस्पतिस्तोत्रमश्विनाद्भर्यवंश्वसुवने वसुधेयस्यव्वेतुयज // // 19 // देवोदेवैः // देवोदेवैर्वनस्पतिर्हिर॑ण्ण्यपर्णोमधुशाखल्सु पिप्पुलोदेवमिन्द्रेमवर्द्धयत् // दिवमग्ग्रेणास्पृक्षदान्तरिक्षम्पृथि वीमव्हीवसुवने वसुधेयस्यत्वेतुयजे॥२०॥ देवम्बर्हिः // देवम्ब / / हिर्वारितीनान्देवमिन्द्रमवर्द्धयत्॥स्वासस्त्थमिन्द्रेणासन्नमन्न्या / / बहीष्यभ्यभूवसुवनैवसुधेयस्यत्वेतुयज॥ 21 // देवोऽअग्निशा| For Private And Personal