________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandit KAASAIGALICACAMASTARAK रत्॥ यज्ञञ्चनस्तन्न्वञ्चप्प्रजाञ्चादित्यैरिन्द्र सहीपधाति॥४६॥ अग्नेत्वन्नोऽअन्त / मऽउतत्राताशिवोभवावरूथ्यः॥ वसुरग्नि सुश्श्रवाऽअच्छानक्षिद्युमत्तमयिन्दार // तन्त्वाशोचिष्टदी है। दिवल्सुम्नार्यनूनमीमहेसखिभ्य: // 47 // [2] इतिश्रीवाजसने / यसंहितायांपंचविंशोऽध्यायः // 25 // श्रीवेदपुरुषायनमः // [15] अनुवाक्सूत्रम् // अग्निश्चपंचदशोच्चातएकादशद्वौषड्डि शतिः॥ हरिःॐअग्निश्च / पृथिवीचसन्नतेतेमेसन्नमतामुदोब्बा है। For Private And Personal