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- 243 : २६.८ ]
इंदिदिरवज्जा
239) मालइ पुणो वि मालइ हा मालइ मालइ त्ति जंपतो । उन्ग्गिो' भमइ अली हिंडतो सयलवणराई ॥ ४॥
240) रुणरुणइ वलहू' वेल्लर पक्खउडे धुणइ खिव अंगाई । माइकलियाविरहे पंचावत्थं गओ भमरो ॥ ५ ॥ 241 ) मालइविरहे रे तरुणभसल मा रुवसु निव्भरुकंठं । वलहविओय दुक्खं मरणेण विणा न वीसरइ ॥ ६॥ 242 ) जाव न वियसइ सरसा वरइ न ईसं पि मालईकलिया । अविणीयमयहिं ताव च्चिय पाउमारद्वा ॥ ७ ॥ 243) वियसंतसरसतामरसभसल वियसेइ मालई जाव । ता जत्थ व तत्थ व जह व तह व दियहा गमिजंति ॥ ८ ॥
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239) [ माउति पुनरपि मालति हा मालति मालतीति जल्पन् । उद्विग्नो भ्रमत्य लिहिण्डमानः सकलवनराजीः ॥ ] मालति पुनरपि मालति हा माउति मातीति जल्पन्नुद्विग्नो भ्रमत्यविर्हिण्डमानः सकलवनराजीः । अयं भावः । सकलगुणयुक्तां मालतीमनवलोकयन् सकला अपि पुष्पजातीस्तृणायापि न मन्यत इत्यर्थः ।। २३९ ।।
240 ) [ रुणरुणायते वलति वेल्लति पक्षपुढं धुनोति क्षिपत्यङ्गानि । मालतीकलिकाविरहे पश्चावस्थां गतो भ्रमरः ।। २४० ।। ]
241 ) [ मालतीविरहे रे तरुणभ्रमर मा रोदीर्निर्भरोत्कण्ठम् । वल्लभवियोगदुःखं भरणेन विना न विस्मर्यते ।। ] रे तरुण भ्रमर मा रोदीर्निर्भरोकण्ठम् । वल्लभ वियोगदुःखं मरणेन बिना न विस्मरति ।। २४१ ॥
242 ) [ यावन्न विकसति सरसा वृणोति नेशमपि मालतीकलिका । अविनीतमधुकरैस्तावदेव पातुमारब्धा ॥] यावत्सरसा मालती न विकसति, ईसं पि न वरइ ईषदपि न वृणोति, अविनीतमधुकरेस्तावदेव पातुमास्वादयितुमारब्धा । अयं भावः । काचन नायिका अनवतीर्णतारुण्यपि प्रियैः पातुमारब्धा । परकीयासती नायिका ॥ २४२ ॥
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243 ) [ विकसत्सरसतामरस भ्रमर विकसति मालती यावत् । तावद्यत्र वा तत्र वा यथा वा तथा वा दिवसा गम्यन्ते ॥ ] विकसत्सरस1 G उन्त्रिष्णो
2 G चलइ
वल ५