________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // वैशाखमाहात्म्य अध्याय 19 // ब्रह्मलोकेव्यवस्थिताः // 31 // तिष्ठतिसुप्तिमापन्नायावत्कल्पमतंद्रिताः॥ पुनर्निशात्ययेब्रह्मायथापूर्वमकल्पयत् // 32 // ऋषीन्देवान्पितँल्लोकान्धधिमन्पृिथक्पृथक् // पुनर्दशावताराहिविष्णोदेवस्यचक्रिणः // 33 // नियमेन . भवंत्येतेतथान्येऽपिचभूरिशः // देवताऋषयश्चैवआकल्पंचगिरांपतेः॥३४॥ पुनरेवाभिवर्ततेब्रह्मणासहमुक्तिगाः॥ भूपाश्चसाधवोयेचसिद्धिप्राप्ताःपरंगताः // 35 // तेनैवचाभिवर्ततेसत्यलोकव्यवस्थिताः॥ तद्राशिगाःपुनयाँतितन्नाम्नाश्रुतिसंस्थिताः // 36 // तत्तद्गोत्रेषुजायंतेतत्तत्कर्मरताःसदा // दैत्यानामपिसर्वेषांयदाकलियुगात्ययः॥३७॥ कलिनासहगच्छंतियांगतिंनिरयालयाः // तेषांचराशिसंस्थायेतन्नामानोऽपरेपिच // 38 ॥जायतेकर्मणास्वेनतत्तत्कTERTerwagereळाला For Private and Personal Use Only