________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsur Gyanmandir शु० मत्त:मामपेक्ष्य // 52 // (1) होताध्वर्युपच्छति / कास्विदासौत् // 53 // प्रत्याह / द्यौरामौत् / / * व्याख्यातौ // 54 // अध्वयु होतारम्पच्छति / काईमरे ईमितिचकारार्थे अरे इत्यामन्वितवि- 23 सं० स्विंदासीपिलिप्पिलाकास्विदासीत्पिशङ्गिला // 53 // द्यौरासी त्॥ द्यौरा सौत्पूर्वचित्तिरप्रवऽआसोडुहद्दयः // अविरासोत्पिलि प्मुिलारात्विरासोत्पिशङ्गिला // 54 // काऽईम् // काऽईमरेपिशङ्गि लाकाऽईङ्करुपिशङ्गिला॥ काईमास्कन्दमर्षतिकऽ म्पन्थाँब्बिसर्प ति // 55 // अजारे // पिशङ्गिलाप्रश्वावित्कुरुपिशङ्गिला // शुश षय: उनावपिनिपातौ। काचबरे होत: पिशङ्गिला काचकुपिशङ्गिला / कञ्चबास्कन्दम् अर्षतिच पन्यांविसर्प ति // 55 // प्रत्याह / अजारेअजानित्यारोविः अरे अध्वर्यो पिशङ्गिला। (1) का. पुनः पूर्वावपरणोत्तरवेदि काखिदिति। ततः सदसो निष्कम्य हविर्धानस्य पुर उत्तरषेदेः पश्चादुपविश्य पूर्वी पूर्वोक्ती होत्रध्वयूं चतुग्भिः संवदेते इति सूत्रार्थः / For Private And Personal