________________ Acharya Shri Kalashsagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एवमहिंस्यमाना अहिंसन्तश्च परस्परमट्रोहेण सर्वथा मित्रस्यचक्षुषासमौक्षामहे॥१८॥ दृतेहएह / यजुः। दृतेर्ट हमा। अतिशयाथं पुनर्वचनम् / ज्योक्चिरम तेतवसंदृशिसंदर्शने / जीव्यासञ्जोवे यम् आदरार्थम् पुनर्वचनम् // 16 // नमस्तेहरसेइति व्याख्यातम् // 20 // नमस्ते। हञ्चक्षणासर्वाणिभूतानिसमौक्षे॥ मित्तस्युचक्षुषासमोक्षामहे।१८। हतुव्हमा // ज्वोक्त सन्दर्शिजीव्यामुज्ज्योक्ती सुन्दृशिजीव्या , सम् // 16 // नमस्तुहासेधोचिषुनमस्तेऽअस्त्वयि // अन्ज्याँस्तेऽ / सम्मत्तपन्तुहेतयं पाबुकोऽअम्मस्यशिवोभव ॥२०॥नमस्ते।ऽअस्तु / ब्बिा तुनमस्तेस्तनयित्नवे॥नमस्तेभगवनस्तुवतुस्वःसमोहस॥२१॥ दे अनुष्टुभो। नमःतेतुभ्यम्अस्तु / विद्यतेविटुापाय / नमस्तेस्तनयित्नवे स्तनरिनुरूपाय नम: तेहेमगवन् अस्तु / यतःय त्मात् स्थःस्वर्गलोकमान्नुमसमौ हसेचेष्टसे / अमर्त्य त्यमित्यभिप्रायः // 21 // 169. For Private And Personal