________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gagmandir , ज्योप्रकर्षेण यजनशील अध्वर्योयस्त्वं कविःक्रान्तदर्शन: वायुमअच्छ आभिमुख्य न प्रयक्षसिप्रकर्षण यष्ट मिच्छसि / यजतेरेतद्रूपम् बृहतौमनीषा वृहत्यामनीषया। किंभूतं वायुम् / हट्रयिम् महाधनम् / विश्ववारं सर्वस्यवरणीयम् रथप्रां रथपूरणम् शत्रुधनैरसौरथंपूरयति / , द्युतद्यामा द्योतनंयमन यस्य सतथोक्तः / यु तद्यामानमिति विभक्तिव्यत्ययः वायुविशेषणत्वात् / च्छाबहुतोमनीषाबृहदयिंविधवाररथाप्राम् // धुतामानियतु पत्त्यमान कवि कुविमियक्षसिप्प्रयज्ज्यो // 55 // इन्द्रवायूऽडमे // सुताऽउपप्प्रयोभिरागतम् // इन्दवोवामुशन्तुिहि // 56 // मिन्च से हुवे // पूतदक्षंवरुणचरिशादसम् // धियंङ्गुताची साधन्ता // 57 // नियुत:पत्यमानः अवापिपत्यमानमिति पदयोर्विकारोवाक्यवशात् नियुद्भिरश्वैरुत्पतन्तम् कविंक्रा। न्तदर्शनम् // 55 // इन्द्रवायूमे व्याख्यातम् // 56 // मिठ० हुवे / वे गायल्यौ मिनमायामि पूतदक्षम् पूतस्यशुद्धस्य प्राणिनउद्दरणे दक्षं सोमम् / वरुणच रिशादसम् हिंसकादिविनाशने ॐ शक्तिकुर्वाणम् हुवे / कीदृशो / धियंकर्मघताचीम् येनकर्मणादृतमच्यत हयतेतत्कर्मसाधन्ता For Private And Personal