________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir डघुलेट् / जुषतामेकवचनम् अन्यदुक्तम् // 44 // होतायक्षादन्द्रमृषभस्य / तुल्यव्याख्यानम् // 45 // नाम्पार्वत श्रोणित शितामुतऽउत्सादुतोङ्गादङ्गादत्तानाङ्करदे वसरखतीजुषा हुवि)तुर्वज // 44 // होतावादिन्द्रमृषभ स्वहुविषुऽआयटुयमंड्ातोमेदाउ तम्पुराद्देषोभ्यापुरापौरुषेय्या , गृभोघसन्नुनडासेऽबज्जाणांव्यवसप्प्रथमाना७ सुमत्राणाशत दियाणामग्निष्ष्वात्तानाम्पौवोपवसनानाम्पाशपर्वत श्रोणित भि तामुतऽउत्साढतोङ्गादङ्गादत्तानाशरदेवमिन्द्रौजुषा र हुवि:तु र्यजं // 45 // होतावक्षुहुनस्पतिमुभि // हिपिष्टतमयारभिष्टया होतायक्षदनस्पतिम् / (1) वनस्पतिप्रैषः / होतायजतु वनस्पतिंयूपम / अभिहिपिष्टतमयारभिष्ठ (1) का. उत्तमौ वनस्पतिस्विष्टकतोः / अन्त पठामानौ होता यक्षहनस्पतिमभि होता यक्षदग्नि खिष्टक्वतमिति क्रमेण वनस्पतियाग विष्टक्वद्यागे च प्रेषी। 18 / 16 / 25 / For Private And Personal