SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - जीजलदीत्यैयार करना होती सुरमासाकरकेमिला वैनहीतोगोलीवनाकषछोडे समय के ऊपरसुर मासाकरकेवनाचेक्योंके चूरन करकेरपनेसे निर बलताकोषाप्नहोताहै।चटनीवनानेकीविधि। शरवतसेगाडी-ौरमोजूम से पतली होयकेजीभ नसेचाटने से नीचेकोनतरजाय औरषानेपीनेकीता सीरसमयके ऊपरमनुध्यकेजोडोंमेंदेरसेपानहोयया कारणकरकाहिकीमोंने यहुक्रियावनाईके गुजरे। समय सेतुर्ततासीरपानहोवैगोरजवारशमाजम के प्रकार सेवनाईजाती।परंतुनुस्काचूरनदरदण्डो ताहै के नदर मेंरे।औरधथममैलवूववनानेकीय हक्रियाणीके वाजेवीजोंकीमींगीकाशीरा निकालके| सहतकेसंगचाशनीवनातेथेपीछेभाजूमकेषकार || सेवनानेलो अवकभीतीशीराभोरकभीकतरके औरकभी जौकुटकरके मिलातेहाथमान्सके अर्कवनानेकीविधिमान्सकाचर्कचकेकाम में लावतोनुनम औरकच्चमान्सकाचर्कदरगंधी लेवाताहै औरजोजदानेतीप्रथमहीउस्कोधूओं कावलनिकलताहै याकारणयहउचित है के घथम यखनीकेप्रकारसे मोहविधेवासन में पकावैजवपक जावैतववेसाहीमोहबंधेसाकरके इकलानथादू सरीवस्तुमान्सकापानीमिलाकैअर्कचे थे गुडकीनशीलीशराववनानेकीविधि।गुड और वरकीवकलऔरवरकोवकलटूकरकरकेश! एवमटका मेंडालके और जितनाचाहियेतना || - - - - D mamam For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy