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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० - - 4 - कंपनवाय और अवाय ओरपकारकेकफविर्क रौरसीत विकारों को विशेषगुणदायकहै।वि धि निर्मलशहत ११ छटाँकासेरदरयाव के पानी में मिलाके आँच पर धरै-औरझागदूरकरकाकाली मिचीसोंठाकुलीजनालागामस्तंगी।पोदीनाना कर कर एकरतोलाकूट के पोटली मेंवाँधके डाले ओरपोटलीकोहलातारहैजवभरवत गाढा होजाने लगेनवपोटली को निचोडलेनोरशरवतकीचाश नीकरले औरकस्तूरी-और-अंवरएकरमाशोत्यार होने के पीछे मिलादेती विशेषधवल होजायापार वतासनतीनाजोवावलेपनको ओरत दरकी निर्वलताजोतरी करकेहो औरहाथपावकी सजन की अर्पत गणदायक है औरतवियनकोनर मकरै विधिवालछडदोतोलासुपेदनिसोत। सुपेदगारीकूश्लीनतोलेोफ़सनतीनरूमी।४ तोले गुलावकेफूल ले तोले सुपेद बूरोआधसेरलेकेचा शनीवनाले|अथवागयहशरवताकलेजेकी निर्वलताचौरसदर कीनिर्वलताओरतिल्लीकीसू जनको औरयाकीवायको दूरकरैऔरतवियत कोनरमकाविधिानफसननीनछ तोलावा लडाअजमोदकीजडचार२ तोला३पावसुपेदवू रेकीचाशनीकरकेपारवतवनालेशरवततू ताजोकरके भीतरकीसूजनको दूरकाविधि शहतूत का रस निचोडामा १९छटोंकापालिस पाहतेपालटाकाशनीकरे ओरएकमासेकेसर For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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