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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रो। सब वरावर लेके सुर्मासा कर के कौसा के लिपटा वे अथवा सुपेद मिची वीजा बोल । तीन २ मासे । माजूफल छैमासे । चूरन कर के काग पर लगावै थवाः। चूल्हे की माटी सिरका में पीस के सिर पर लगा वैदवायसुखाला सदधकार की घोसी कोदूर करे ॥ विधि। ऐसेका घार ३ माथे । वंमूर को गोद । कतीरा मुलहट्टी मोनो माझे । सब की बराबर मिश्री ले के सब चूरन करके असा मुनासिव जाने वेसाषाय ॥॥॥ वायुलर बू ॥ स्वास खीर कफ की घोसी को दूर करैरा विधि॥ गुभ्यार पाठो १ सेर घारी नोंना ३ छो का देसी जमायन साधयाव । धीपर१ तोले सबको कोरी हंडी में भर के या कोमोंह पारी से ढक के उरद के धून से बंद करके धूप देवै अवसव की भस्म हो जाय! तव काम में लाये || वायुल फजल ।। स्वास के दूर करने में विशेष यज भाई है || विधि || वडीम् ली की जड़ टूक कर के बराबर के भागलीये शह त के संग मौदबधे देग में पका के ठंडे होने के पश्चात खूवमल के चटनी बनावे ॥ ॥ वायुल तूफ॥अ यति बुकंदर और सुर्षधूरे की इसी प्रकार सेबनावे ओ विशेष गुणा दायक और अजमाया है ॥ दवाथप सूता। श्रीरमीत को पुरण करें। विधि। कुदरू गो दनिर के चूरा पाँचर भास। निर्विसी ४ भासे । काढा कर के ४ रत्नी कस्तूरी घोट के पीवे ॥ दवाईप्रसूत । यौ रझोले की || विधि। कालेधनूरे के बीज रे मासे । सोठा काली मिर्ची ३२ माशे पानी में छोटी २ गोलीव For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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