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३ आहार परिज्ञाध्य
सूत्रकृताङ्गे २ श्रुतस्कन्धे शीलाकीयावृत्तिः
॥३४९॥
उदगत्ताए अवगत्ताए पणगत्ताए सेवालत्ताए कलंबुगत्ताए हडताए. कसेरुगत्ताए कच्छभाणियत्ताए उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमुयत्ताए नलिणत्ताए सुभगत्ताए सोगंधियत्ताए पोंडरियमहापोंडरियत्ताए सयपत्तत्ताए सहस्सपत्सत्ताए एवं कल्हारकोंकणयत्ताए अरविंदत्ताए तामरसत्ताए भिसभिसमुणालपुक्खलत्ताए पुक्खलच्छिभगत्ताए विउदंति, ते जीवा तेर्सि णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेंति पुढवीसरीर जाव संतं, अवरेऽविय णं तेसिंउदगजोणियाणं उद्गाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं, एगोचेव आलावगो॥सूत्रं ५४॥ अहावरं पुरक्खायं इहेगतिया सत्ता तेसिं चेव पुढवीजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहिं अज्झारोहजोणिएहिं अज्झारुहेहिं अज्झारोहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं पुढविजोणिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं एवं ओसहीहिवि तिन्नि आलावगा, एवं हरिएहिवि तिन्नि आलावगा, पुढविजोणिएहिवि आएहिं काएहिं जाव कूरेहिं उद्गजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं मृलेहिं जाव बीएहिं एवं अज्झारुहेहिवि तिण्णि तणेहिपि तिण्णि आलावगा, ओसहीहिंपि तिषिण, हरिएहिंपितिपिण, उद्गजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउद्देति ॥ ते जीवा तेसिं पुढवीजोणियाणं उद्गजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहीजोणियाणं हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्झा
टटटटटटaeeeeeeeee
॥३४९॥
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