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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५८) पुनः गुरुगुणगायन गजलविजयधनचन्द्र गुरु शानी, विनंती एक चित धरजो । प्रेमी पाठक भमो तारा, गणी बालक दया करजो ॥ वि० ॥ टेक ॥ विजयने विभवता भारी, अखिल महितल के उपगारी । भरी सन्तोषता प्यारी, विषय ने दरथी हरजो ॥ वि० ॥ १ ॥ बनी अनगार कसि तनने, नथी परमाद मानन में । वदे वानी भविक जनने, तनूने उद्यमी करजो ॥ वि० ॥ २ ॥ नथी लोभी नथी मानी, नथी क्रोधी थy प्रानी । वदे मीठी सदा वानी, भली सुख सन्तती वरजो ॥वि०॥ ३ ॥ बनो सद्गुणी बनो नेता, बनो ध्यानी बनो घेत्ता । बनो संगी बनो मेत्ता, भला गुण ज्ञानने धरजो ॥ वि० ॥ ४ ॥ रटो प्रभु पार्श्व गुणधामी, वरो मंगल सुखारामी । राग अरु द्वेषने वामी, देव शुध चित्तमां घरजो ॥ वि० ॥ ५ ॥ विजयराजेन्द्र सूरिराजा, स्वर्ग मांहे थया ताजा । गुरू सप्तमी दिवस झाझा, ओच्छव शुभ काजने करजो । वि० ॥ ६ ॥ नगर वागरा है वडभागी, मूरिधनचन्द्र वपु त्यागी । थया सुरलोक-सुखरागी, संघना विघने हरजो ॥ वि० ॥ ७ ॥ जयन्ती शुभ गुरु दरशे वेद-मई-नर्व-शशी-वरशे। मूरिभूपेन्द्र मुनि-हर, हर्ष ने ध्यानमा धरजो।। वि० ॥८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020774
Book TitleSuri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansvijay
PublisherRajendra Jain Seva Samaj
Publication Year1926
Total Pages288
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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