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खमणं छट्ठ - ट्ठम-दसमखमणं खमणं च खट्ट अट्टमयं, खमणं खमणं खमणं, छहुंच गदोस्सिमो छेदो ॥७८
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( भ० इन्द्रनन्दी कृत - छेदपिंड गा० ७८
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श्रद्यश्चतुर्दश दिनैर्विनिवृत्तयोगः ।
षष्ठेन निष्ठित कृति र्जिन वर्धमानः ॥ शेषा विधूतघन कर्म निबद्ध पाशाः । मासेन ते यति वरास्त्व भवन् वियोगाः || २६ ॥
( समाधि भक्ति हो० २६ ॥ )
मान छ, अष्ठम, दशमभक्त इत्यादि तप परिभाषा है, इनका अर्थ होता है २ उपवास ३ उपवास ४ उपवास व्रत इत्यादि । यहां उपवास के दिनों की दो २ खुराक और अंतरपारणा ( धारणा ) तथा पारणा के एक एक दिन की एकेकवार की २ खुराक का त्याग होता है, इस हिसाब से “दो उपवास वगैरह में है खुराक के त्याग रूप छठ्ठ" इत्यादि संज्ञा दी जाती है। वास्तव में प्रति दिन दो २ दफे खुराक लेना माना जाता है, उनकी मयसंख्या प्रतिज्ञा टु आदि शब्दो से होती है
जैनआप मुनि की तपस्या में प्रति दिन दो २ खुराक का हिसाब लगाते हैं. तब तो ठीक है कि मुनि उत्सर्ग से दो दफे आहार करें और उनके त्याग में चतुर्थ भक्त छठ्ठ भक्त आदि प्रतिवा भी करें। इस विधान से एक दफे ही श्राहार बताना वह एकान्त बचन हो जाता है । इसके अलावा तपस्वी आदि के लिये तो विशेष आजादी है, वे अधिक लाभ के निमित्त विशेष दफे आहार लें तो भी अनुचित नहीं है।
दिगम्बर -- सुमि श्राहार औषध या भेषज में मांस वगैरह को ग्रहण न करे !
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