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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ४७ ] श्राहार पानी लाकर दिन दिन में ही आहार कर लेते हैं। मगर कोई मुनि उसको रखले और रात्रि भोजन करे तो वह पुलाक है । ६-मुनि रात को एक वार भोजन पान करे तो तीन उपवास अर्थात् तीन वार नमोकार मंत्र का जाप करना चाहिये । ( दिगम्बर चर्चा सागर पृ० ३२१ च० समीक्षा पृ० १२३) भट्ट० इन्द्र नन्दी के नीतिसार श्लो० ४६ में भी रोगी साधु की परिचर्या करने का विधान है जो पात्र के जरिये साध्य है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारांश - जैन निर्गन्ध पात्र को रक्खे। जिनके जरिये वे आहार पानी ला सकते हैं और दूसरे मुनिओं की भक्ति भी कर सकते हैं । इत्यादि । जिनागम में उल्लेख है कि मुनि लोहार्यजी पात्र होने के कारण ही तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी की आहार पानी आदि से वैया नृत्य करते थे । ( श्र० नि० गा० टीका ) दिगम्बर- -मुनियों को दंड ( डंडा कभी वह अधिकरण भी बन जाता है। ****** ) रखना उचित नहीं है, जैन --ठीक बात है पाप श्रमण के पास उपकरण भी अधिकरण बन जाता है, ऐसी हालत में तो दंड ही क्यों पीछी कमण्डल, पुस्तक, रुमाल और शरीर, ये सब अधिकरण बन जाते है । मुनि कुस्ति लड़ें, कमंडल पीछी या पुस्तक से दूसरे को मारे, या पुस्तक के रुमाल से किसी को बांधे तो उसके लिये शरीरादि उपकरण श्रधिकरण ही बन जाते हैं, इसमें उपकरण का क्या दोष ? इसमें तो मुनि ही दोषित हैं। जैनजगत और जैनमित्र की फाइलों में अनेक ऐसे समाचार छपे है कि जिनमें दिगम्बर सुनियों ने उपकरण को अधिकरण बनाया हो उसके प्रमाण है । तीर्थकर भगवान श्री महावीर स्वामी करमाते हैं किजे श्रसवा ते परिसवा जे परिसवा ते आसवा ! " For Private And Personal Use Only
SR No.020729
Book TitleShvetambar Digamber Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand Shah
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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