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होता है। तीर्थकर सिवाय ओरों के लीये तो ब्राह्मणकुल भी उच्च कुल है। उस कुल के गणधर हुए हैं कई मोक्ष में भी गये हैं।
दिगम्बर क्या एक भव में भी गोत्रकर्म बदल जाता है ? उच्चगोत्री नोच और नीचगोत्री उच्च बन जाता है ?
जैन-दिगम्बर शास्त्र से भी यह सिद्ध है कि-एक ही भब में भी गोत्रकर्म का परावर्तन हो जाता है। मोक्ष योग्य शूद्र के अधिकार में (पू, ८८, ८९) इस विषय के काफी दिगम्बर प्रमाण दिये गये हैं। पाठक वहां से पढ लेवे। गोत्रकर्म बदल जाता है। भगवान् महावीर के गोत्रकर्म बदलने पर ही गर्भका परावर्तन हुआ है । गर्भ का परावर्तक था इन्द्र के आशांकित 'हरिण गमेषी देव'।
दिगम्बर-देवशक्ति तो अजीव मानी जाती है। दिगम्बर शास्त्र में भी ऐसी अनेक बात हैं। देखिये
(१) देघने सीताके लीये धधकता हुआ अग्निकुंडको जलका कुंड बना दिया और उसमें कमल भी खील उठे।
( पद्मपुराण ) (२) देवने शूली का ही स्वर्णसिंहासन बना दिया, तलवार को मोतियन की माला बना दी।
(सुदर्शन चरित्र) (३) देवने काले सर्प की फूल माला बना दी।
(सोमारानी चरित्र) (४) देवने मुरदेसे निकाले हुए दांत और हडिओंको खीर के रूपमें बना दिये, थाली का चक्र के रूप में परावर्तन कर दिया।
( पद्मपुराण, परशुराम अधिकार) (५) मुनिसुव्रत स्वामी का आहार होने पर देवने ऋषभदत्त शेठके घर पर रत्नों की व फूलों की वर्षा की, भोजन अक्षय हो गया, उस भोजन से हजारो आदमी तृप्त हुए।
(हरिवंश पुराण ) (६) जटायु (गीध) एक पारिन्दा था। मुनि के दर्शन से घह सोनेका बन गया। और उसके सिरपर रत्न तथा हीरों की जटा निकल आई। इसमें भी देव करामत दिख पड़ती है।
( पद्मपुराण)
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