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यदि विद्याधर से वंश चलता तो इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं थी क्यों कि भूचर और विद्याधरो का सम्बन्ध तो होता ही रहता है इतना ही क्यों ? दिगम्बर शास्त्र तो जम्बूद्वीप
और धातकी खंड में भी आपली वैवाहिक सम्बन्ध मानते हैं, वहां काल देहमान और आयुष्य आदि की समता होने के कारण आश्चर्य को अवकाश नहीं है। मगर यहां तो मामला ही दूसरा है, भोगभूमि और कर्मभूमि का ही भेद है, साथ साथ में आरा अवगाहना और आयुष्य का भी फर्क है। इस फर्क को हटा देना यही तो 'अघटन घटना' है।
यह घटना भी सच्ची है। इस में साम्प्रदायिक पुष्टि की कोई बात नहीं है कि-ऐसी कल्पित घटना खडी करनी पडे और इसे आश्चर्य का मुलम्मा भी चड़ाना पड़े।
दिगम्बर-देव करामत तो अजीव होती ही है। अतः देवके द्वारा बने हुए कार्य को कल्पना मानना निरर्थक है मगर यह तो बताओ कि इस में आश्चर्य क्या है ।।
जैन-इस घटना में युगलिकों को यहां ले आना, उनके शरीर को छोटा कर देना, अनपवयं आयुष्य को भी घटा देना युगलिकों का नरक में जाना और उनसे 'कर्म भूमिज वंश' चलाना ये सब आश्चर्य है। "हरिवंश कुलोत्पत्ति" शब्द से ये. सब आश्चर्य लीये जाते हैं।
दिगम्बर-श्वेताम्बर कहते है कि-(४) स्त्री केवलीनी होकर मोक्षमें जा सकती है सिर्फ तीर्थकरी बनता नहीं है, किन्तु मिथिला नगरी के कुंभ राजा की पुत्री मल्लीकुमारी मनापर्यव शानी व केवलीनी होकर और १९ घे तीर्थकर बनकर मोक्ष में गई और उसका शासन चला। वह चौथा "स्त्री तीर्थ" आश्चर्य है।
जैन-"पज्जते विय" (गो. कर्म० गा० ३००) व "मणुसिणि ए" (गा० ३०१) से स्पष्ट है कि पुरुष को कभी स्त्रीवेद का उदय होता नहीं है एवं स्त्री को कभी पुरुषवेद का उदय होता नहीं है, और "थी-पुरिस०" (गो० कर्म० गा० ३८८) व “अवगयवेदे मणुसिणी०" (गो० जीव० ७१४) से निश्चित है कि स्त्री मोक्ष में जाती है, किन्तु तीर्थकरी बनती नहीं है, इत्यादि तो
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