________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२) सींहमुनि उस औषध को कसाई के घरसे या यक्षस्थान से नहीं लाये थे, एक परम जैनी के घर से लाये थे, जिसका नाम है रेवती।
जैनागम से उस समयकी दो रेवतीका जीक पाया जाता है।
एक रेवती थी, राजगृही के महाशतक की स्त्री। जिसका वर्णन मीलता है कि
पाठ-तएणं सा रेवह गाहावइणी अंतोसत्तरस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूआ अमृदुहट्टवसट्टा कालमासे कालं किचा इमीसे रयणप्पभाए बुढवीए लोलुएच्चुए नरए चउरासीई वासह ठिइएसु नेरइएसु नेरहएत्ताए उपवण्णा।
( श्रीउपासकदशांगसूत्र ) यह मरकर नारकीमें गई है, सीह मुनि इसके घरसे औषध नहीं लाये थे।
दूसरी रेवती थी, मेंढिक ग्रामकी व्रतधारिणी जैन उपासिका। जिसका वर्णन मिलता है कि--
पाठ-समणस्स भगवओ महावीरस्स सुलसा रेवइ पामुक्खाणं समणोवासियाणं तिन्नीमयसाहस्सीओ अट्ठारस सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था।
(श्री कल्पसूत्र वीरचरित्र) पाठ-तएणं तीए रेवतीए गाहावइणीए तेणं दधसुद्धेणं जाव दाणेणं सीहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउर णिबद्धे, जहा विजयस्स, जार जम्मं जीवियफले रेवती गाहावइणीए ।
( श्रीभगवतीजी सूत्र श०१५) सीह मुनि इस मेढिक ग्रामवाली रेवती के घरसे उक्त औषध को लाये थे, इस रेवती ने भी उक्त औषध को देकर देव आयुष्यका बंध किया और तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन किया ।
दिगम्बर विद्वान् भी इस रेवती के इस औषधदानको तारिफ करते है और तीर्थकरनामकर्म उपार्जन करने का कारण यही
For Private And Personal Use Only