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श्वेताम्बर शास्त्र भी ऐसा ही मानते हैवीरं अरिट्टनेमि पासं मल्लिं च वासुपुज्जं च । ए ए मृत्तूण जिणे, अवसेसा आसि रायाणो ॥२२१॥ वीरो अरिद्वनेमि पासो मल्ली अ वासुपुज्जो अ । पढमवए पव्वहया, सेसा पुण पच्छिमवयंमि ॥२२६॥
___ (विशेषावश्यक भाष्यवाली, भावश्यक नियुक्ति) (२) तिहुयण पहाण सामि, कुमारकाले वि तविय तव चरणं । पसुपुजसुयं मल्लिं चरमतिय संथुवे णिच्चं ॥
(स्वामी कीर्तिकेयानुपेक्षा, व चर्चा-९३) जो तीनो भुवनमें प्रधान है, जिन्हों ने राजकुमार दशामें ही मुनिपना स्वीकारा है, उन वासुपूज्य मल्लिनाथ और अंतिम तीन तीर्थकरो की में नित्य स्तुति करता हुँ । (३) भुक्त्वा कुमारकाले त्रिंशद्वर्षाण्यनन्तगुणराशिः।
अमरोपनीत भोगान् सहसाभिनिबोधितो ऽन्येयुः ॥७॥
भगवान् महावीर स्वामीने राजकुमार दशामें तीस वर्ष तक देवोसे प्राप्त भोगोपभोगका उपभोग किया और बादमें किसी दिन सहसा वैराग्य पाया.
(आ पूज्यपाद कृत निर्वाण भक्तिः श्लोक, ७ पृ. १२३) (४) आचार्य जिनसेन कृत हरिवंश पुराण अ० प्रलोक ६,७,८ में भगवान महावीर स्वामीका विवाह प्रसंग है।
(बंगाल-एसियाटिक सोसायटी की पुस्तकालय का हरिवंश पुराण, पीटर्सन की चौथी रिपोर्ट पृ. १६८, प्रो. हीरालालजी दिगम्बर जैन का सन्देह और स्वीकार लेख, और कल्पित कथा समीक्षा प्रत्युत्तर पृ. ११९) ।
(५) दिगम्बर धर्मशास्त्र इस बातको स्वीकार नहीं करते, किभगवान् महावीरने विवाह किया था। वे उनको बाल ब्रह्मचारी मानते हैं। पर इस बातकी पुष्टि के लिये उनके पास कोई आगम सिद्ध प्रमाण नहीं है। हमारे चौवीस तीर्थंकरों में चाहे जिस तीर्थकर को देखिये (एक दो को छोड़कर) आप गृहस्थ ही पायंगे। ऋषभनाथ स्वामी के तो कई पुत्र थे। इस के अतिरिक्त हमारे
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