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देखती है और भगवान् नरकसे आकर गर्भमें रहे तो उनकी माता बारहवे स्वप्नमें "भवन" को देखती है । इस बातको सूचन करके लिये बारहवे स्वप्नमें विमान और भवन ये दो नाम: बताए जाते हैं फलस्वरूप तीर्थकर की माता १४ स्वप्न देखते हैं, मगर यह श्वेताम्बर का भ्रम है । तीर्थकर को माता तीर्थकर के च्यवन में १६ स्वप्न देखती है। उक्त १४ स्वप्नों से अधिक सीहासन और मीनयुगल इन दो स्वप्न को भी देखती है ।
जैन-तीथकर की माताएं १४ स्वप्न देखें या १६, इस बारे में अनेक पहेलुसे निर्णय हो सकता है । जैसा कि
(१) दिगम्बर कवि पुष्पदन्तजी ने अपभ्रंश भाषा के महापुराण की तिसरी संधीमें मारुदेवा के १६ स्वप्न में सिंहासन और नागभुवन ये दो स्वप्न अधिक बताये हैं।
इनमें "नागभुवन" यह तो कल्पसूत्रोक्त नरक के भव को सूचित करनेवाला “भवन" ही है।
अर्वाचीन दिगम्बर शास्त्र तो नागभुवन को स्वप्न मानते नहीं है । अतः उस स्वप्न को अलग न गिना जाय तो १५ स्वप्न रहते है । माने-दिगम्बर समाज कवि पुष्पदंत के समय तक १५ ही स्वप्न मानती होगी और बादमें उसने १६ वे स्वप्न को स्थान दिया होगा। कुछ भी हो । मीनयुगल का स्वप्न बादमें बढा है यह निर्णित बात है।
(२) तीर्थंकर की माता देवविमान को देखती है जब उसमें सींहासन को भी देखती है और सरोवर को देखती है जब उसमें मीनयुगल को भी देखती है । पुन: सिंहासन और मीनयुग्मको फिर भी देखे तब तो पुनर्दर्शन हो जाता है स्वप्न की महत्ता कम हो जाती है, और अव्यवस्था हो जाती है।
(३) यूं तो सुपार्श्वनाथ भगवान की माता ने सांप का, नेमिनाथ भगवान की माता ने अरिष्टरत्नों का और पार्श्वनाथभगवान की माताने सांप का स्वप्न भी देखा था, यदि स्वप्नमें इनको भी गीने जाय तो न रहेंगे चौदह, न रहेंगे सोलह । फिर तो संख्याका बंध ही तूट जायगा। मगर वैसे २ स्वप्न से मुकरर संख्यामें फेरफार किया जाता नहीं है।
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