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उदय प्राप्त प्रकृति निरर्थक नहीं होती है वो अपना कार्य अवश्य करती है । इन उदय प्रकृतिओं से सिद्ध ह कि केवलीओं के शरीर में ७ धातुएं हैं।
(२) ब्र० शीतलप्रसादजी केवली के शरीर में नख त्वचा रोंआ और त्वचा पर की महीन झिल्लीका भी भेद बताते हैं । (चर्चासागर समीक्षा पृ. ८०) जव सात धातुओं का अभाव कैंसे माना जाय ?
(३) तीर्थंकरों के ३४ अतिशय में एक अतिशय यह है कि तीर्थकों के खून और मांस सफेद होते हैं
केशः श्मश्रुच लोमानि नखाः दंताः शिरास्तथा । धमन्यः स्नायवः शुक्र-मेतानि पितृजानि हि ॥
(चर्चासागर, चर्चा १९९) पित प्राप्त केश वगैरह रहे और दांत नख शुक्र वगैरह न रहे, यह असम्भवित है । पुवेद में मोक्ष माननेवाली समाज स्त्री प्राप्त नहीं किन्तु पुरुषप्राप्त अंगोंका निषेध करे, यह भी एक विसंवाद है।
(४) आ० कुन्द कुन्ड फरमाते हैं कि-अरिहंत भगवान् को १० प्राण, ६ पर्याप्ति, १००८ लक्षण और गाय के दूधसा सफेद माँस तथा सफेद रुधिर होते हैं।
(बोध प्राभृत गा० ३१ । ३८) (५) केस णह मंसु लोमा, चम्म वसा रुहिर मुत्त पुरिसं वा । __णेवट्ठी णेव सिरा, देवाण सरीर संठाणे ॥
(मूलाचार अ० १२ "लो० ११ । चर्चा सागर चर्चा १९९) संहनन रहित देवों को केश आदि का अभाव होता है, अर्थापत्ति से मानना पड़ेगा, कि-संहनन वाले को ये सब वस्तुएं होती हैं-रहती हैं।
(६) १२ प्रकृति " ध्रव उदय" कहलाती हैं, जो सबके उदय में रहती हैं । वे ये हैं-तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णादि चतुष्क, अगुरुलघु, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ १२ । (व. शीतलप्रसादकृत मोक्षमार्ग प्रकाशक भा० २ अध्या० ४
नामकर्मके उदयस्थान, पृ. १९१)
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