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[ १५२] रराज राजकन्या सा, राजहंसीव सुस्वना । दीक्षा शरनदी शील-पुलिन स्थल शायिनी ॥ १७६ ।। सुंदरी चान निर्वेदा, तां ब्राहमी मन्वदीक्षत । अन्ये चान्याश्च संघिज्ञा, गुरो प्राब्राजिषु स्तदा ।। १७७ ॥
(( भा० जिनसेन कृत भादि पुराण पर्व ) शमिता चक्रवर्तीष्ट-कांतयाऽऽशु सुभद्रया: ब्राहमी ममीये प्रवज्य, भाविसिद्धिश्चिरं तपः ॥ २८८ ॥ कृत्वा विमाने सानुत्तरे, ऽभूत्कल्पे ऽच्युते ऽमरः ।।
(-आदि पुराण प-४७) ३-जिनदत्तार्यिकाम्यणे, श्रेष्ठीभार्या च दीक्षिता ॥ २०६॥ .
(मा० गुण भन्न कृत उत्तर पुराण पर्व .., देव की पुत्र पूर्वमय ) तथा मीता महादेवी पृथिवी सुन्दरी युताः देव्यः श्रुतवती क्षांति-निकट तपसि स्थिताः ॥ ७१२ ॥ मीताजी अच्युत देवलोक में गई । ७१६ ।
___(उत्तर इराण पर्व १८ सीताधिकार ) भ० महावीर स्वामी के माधु आर्यि का प्रावक और श्राविका की संख्या का वर्णन है । इनमें एलक क्षुल्लक का नाम निशान नहीं है।
(महावीर संघ ) (उत्तर पुराण प. लो. १००, ३०५) चंदना साध्वी ( उत्त० ५०७४ श्लो० ३७६) सुप्रतागणिनी, गुणवती श्रार्या ( उत्त० ७६ श्लो० १६५, १६७ ) पांचवे पारा की अन्तिम आर्यिका सर्व श्री।।
(डलर पर्व. ०४५) ये सब आर्याएँ पांच महाप्रत धारिणी थी, छटे, सातवे गुण
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