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[१३. ] वध्यते मुकुटं मुनि, रचितं कुसुमोत्करैः । कंठे श्रीवृषभेशस्य, पृष्पमाला च धार्यते ॥ कन्याने श्रा० शु० ७ के दिन ऋषभदेव भगवान को मुकुट और पुष्प माला पहिनाई।
(कथा कोश मुकुट ससमी कथा, चर्चासागर पृ. २१०, २५६)
कन्या मुकुट चढ़ाते समय भावना भाती है कि “हे जिनवर श्राप मुक्ति स्त्री के वर हो इसलिय श्रापके लिये यह मुकुट और माला पहिनाये जाते हैं।
(मुकुट सप्तमी कथा ६० पामेष्ठीदास की पसागर समीक्षा, पृ० १८५)
दिगम्बर-जब दिगम्बर समाज स्त्री दीक्षा का ही निषेध करती है तो फिर स्त्री को मोक्ष कैसे मिल सकती है ।
जैन-दिगम्बराचार्य भी पाँचव छट और सातवे गुणस्थान की उदय विच्छेद प्रकृतित्रों में स्त्री का निषध नहीं करते हैं फिर कैसे माना जाय कि स्त्री को मुनि दीक्षा नहीं है।
देस तदिय कमाया, तिरिया उज्जोय णीच तिरिय गदी। छठे आहारदुर्ग, थीणतिगं उदय वोच्छिण्णा ॥ २६७ ॥
(गोम्मरसार कर्म० गा० २६७ ) पाँचवे गुणस्थान में प्रत्याख्यानी ४ कषाय. तियंत्र आय, उद्योत, नाचगोत्र व तिर्यंचगति का, और छटे गुणस्थान में आहारक शरीरद्विक व निन्द्र। ३ का उदय व्युच्छेद होना है ॥२६७॥ __ सात गुणस्थान में मम्यक्त्व प्रकृति व अन्तिम ३ संहनन का उदयव्युच्छेद होना है।.६७॥ इससे साफ प्रकट है। कि इन गुणा स्थानों में रुषी वेद या स्त्री जाति का निषेध नहीं है।
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