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[ ११९४ ]
अधोगति में शक्ति भेद पाया जाता है । देखिए -
१- तीर्थंकर भगवान् मोक्ष में ही जाते हैं भरक में जाते ही नहीं हैं तीर्थंकर के जीवन में कोई ऐसा कर्म बन्ध होता ही नहीं है कि वे नरक जांय |
२- श्रभवि मनुष्य सातवें नरक में जाता है मोक्ष में कतई नहीं जाता है यह कहना चाहिये वह मोक्ष पाने में असमर्थ है।
३ – वासुदेव प्रतिवासुदेव नरक में ही जासकते हैं, मोक्ष में नहीं । देवलोक में भी नहीं । यहां गति की साम्यता नहीं रहती है ।
४ - युगालिक स्वर्ग में ही जाते हैं नरक में नहीं, फिर भी गति साम्यता कैसे मानी जाय ?
५- भूज परिसर्प, पक्षी, चतुष्पद, और उर परिसर्प, नीचे तो क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें नरक तक में जाते हैं । मगर ऊपर सिर्फ सहस्रार देवलोक तक ही जाते हैं । यहाँ तो गति साम्यता की कल्पना का फुरचे फुर्खा हो जाता है ।
६-मत्स्य सातवें नरक में जा सकता है। मोक्ष में नहीं । यदि गति कार्य में साम्यता होती तो मत्स्य मोक्ष में भी चला जाना । मगर वह बेचारा ऊँचा श्रहमेन्द्र पद पाने में भी श्रसमर्थ है ।
७- स्त्री मोक्ष में जा सकती है सातवीं नरक में नही ।
प्रगति के नियम में भी वैसी ही विचित्रता पाई जाती है, जैसा कि
नारकी से आकर मनुष्य बना हुश्रा जीव तीर्थकर बन सके, मोक्षमें जाय, नरक में भी जाय, किन्तु वासुदेव बलदेव या चक्रवर्ती न हो सके | यह श्रगति की विचित्रता है ।
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