________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ.अ. तायक्षत्तनुनपातमूतिभिर्जेतारमपराजितम् ॥इन्द्रन्देवस्वर्विदम्प थिभिमधुमत्तमैनराश सेनुतेजसावेत्वाज्यस्युहोतुर्य 2 होता। यक्षुदिडोभिरिन्द्रम् / / होत्यादिडाभिरिन्द्रमीडितमाजुर्वानुममर्त्य / म् // देवोदेवैश्सवीर्योबज्रहस्त पुरन्दरोवेवाज्यस्यहोतर्यज 3/ होत्यक्षदर्हिषीन्द्रम्॥होतायक्षदर्हिषीन्द्रनिषद्हरंवृषभन्नपिसम्॥ वसुभीरुद्वैरादित्यै सुयुनिभर्हिरासंदवेत्वाज्यस्यहोतुर्यज 4 हो / तायादोजोनवीय सहोद्वार इन्द्रमवर्द्धयन्॥ सुप्पायुणाऽअस्म्मि / न्युज्ञेविश्रयन्तामृतावृधोद्वार इन्द्रायमीढुषेव्यत्वाज्यस्युहोर्य | 41 ज 5 होतायक्षदुषेऽइन्द्रस्य // धेनूसुदुघुमातरांमुही // सुवातरौनते For Private and Personal Use Only