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* शिवमहिम्नस्तोत्रम् * भुजङ्गराजमालयानिबदजाटजूटकः श्रियचिरायजायताञ्चकोरबन्धुशेखरः ॥६॥
भाषार्थ:-जिन महादेवजीके चरण धरनेसे भूमि, इन्द्रादि देवताओंके मुकुटों को पुष्पमालाओं से गिरी हुई पराग से धूसर ( मटमैली ) रहती है, जिनका जटाजूट सर्पराज वासुकी के लपेटों से बँध रहा है और जिनके विशाल भाल में चन्द्रमा विराजमान हैं, ऐसे सदाशिव हमें धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्षरूपी सम्पत्ति देखें। ६॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्वलद्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके । धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनेकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
भाषार्थ:-जिन महादेवजी ने अपने कराल भालरूपी मैदान में धधकती हुई अग्नि में प्रबल कामदेवकी आहुति दे दी, जो हिमालयकुमारी श्रीपार्वती जी के स्तनों पर चित्रकारी करने में परम प्रवीण हैं ऐसे त्रिलोचन महादेवजी के विषे मेरी प्रीति होवे ॥ ७ ॥
नवीनमेषमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरकुहूनिशीविनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
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