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अथ रावण कृत
शिवताण्डव-स्तोत्रम्
रावणारिं नमस्कृत्य भक्तानामभयङ्करम् । रावणस्य कृतेः कुर्वे भाषाटीका सुखावहाम् ॥१॥ जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥१॥
भाषार्थ:--तान्डव नृत्य के समय जटारूपी कूप में वेग से घूमती हुई भागीरथी का चञ्चल तरङ्गरूपी लताओं से शोभायमान और धक-धक्क शब्द सहित जलने वाली है अग्नि जिसमें ऐसे ललाटवाले तथा द्वितीयाके चन्द्रमारूपी आभूषणको धारण करनेवाले श्री महादेवजी के विषे मेरी प्रतिक्षण प्रीति होवे ॥१॥
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले । गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ॥ डमड्डमडमडमन्निनादवड्डमर्वयम् । चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥२
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