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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .२८ उपोद्घात mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm बाहड मंत्री का उद्धार । वर्तमान में जो मुख्य मन्दिर है और जिस का चित्र इस पुस्तक के प्रारंभ में लगा हुआ है वह, विश्वस्त प्रमाणों से जाना जाता है कि गुर्जर महामात्य वाहड (संस्कृत में वाग्भट) मंत्री के द्वारा उध्दृत है। विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में, जब चौलुक्य चक्रवर्ती महाराज कुमारपाल राज्य कर रहे थे तब, उन के उक्त प्रधान ने, अपने पिता उदयन मंत्री की इच्छानुसार, इस मन्दिर को बनवाया है । प्रबन्धचिन्तामणि* नामक ऐतिहासिक ग्रंथ के कर्ता मेरुतुङ्गमूरि ने इस उद्धार के प्रबन्ध में लिखा है कि___ सौराष्ट्र ( काठियावाड ) के किसी सुंवर नामक माण्डलिक शत्रु को जीतने के लिये महाराज कुमारपाल ने अपने अमात्य उदयनमंत्री को बहुत सी सेना दे कर भेजा । बढवान शहर के पास जब मंत्री पहुंचा तब शत्रुजयगिरि को नजदीक रहा हुआ समझ कर, सैन्य को तो आगे काठियावाड में रवाना किया और आप गिरिराज की यात्रा के लिये शत्रुजय की ओर रवाना हुआ । शीघ्रता के साथ शत्रुजय पहुंचा और वहां पर भगवत्प्रतिमा का दर्शन, वन्दन और पूजन किया। उस समय वह मन्दिर पत्थर का नहीं बना हुआ था परन्तु लकडी का बना था ४ । मन्दिर की अवस्था बहुत जीर्ण थी । उस में अनेक जगह * यह अन्य विक्रम संवत् १३६१ के फाल्गुन सुदि १५ रविवार के दिन समाप्त हुआ है। गुजरात के इतिहास में इस से बडी पूर्ति हुई है। इस का अंग्रेजी अनुवाद, बंगाल की रॉयल एसियाटिक सोसायटि ने प्रकाशित किया है। ___X गुजरत में पूर्वकाल में बहुत कर के लकडी ही के मकान बनाये जाते थे। इस का निर्णय इस वृत्तान्त से स्पष्ट हो जाता है । गुजरात की प्राचीन राजधानी वल्लभी नगरी के ध्वंसावशेषों में पत्थर का काम कुछ भी उपलब्ध नहीं होता इस लिये पुरातत्त्वज्ञों का अनुमान है कि इस देश में पहले लकडी और ईंट ही के मकान बनाये जाते थे। For Private and Personal Use Only
SR No.020705
Book TitleShatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1917
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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