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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुजय पर्वत का आधुनिक वृत्तान्त । mmmmmmmmmmmmmmmmwww.mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm इसी हिकमत को काम में लाया करते हैं । इस विषय में श्रावक लोगों में जो प्रवाद चला आ रहा है वह अवश्य ही कुछ ठीक जान पडता है । प्रवाद यह है कि बादशाह अलाउद्दीन के समयमें श्रावकों ने अपनी रक्षा के लिये यह कब्र बनवाई थी । एक मुसलमान फकीर की कब्र के कारण-जो की बहुत ही पूज्य समझा जाता था-बहुत संभव है कि मुसलमानों ने इस पवित्र तीर्थ पर उत्पात मचाना उचित न समझा हो । शुरू से यह स्थान श्रावकों के ही अधिकार में चला आता है । ____ "पर्वत की चोटी के दो भाग हैं । ये दोनों ही लगभग तीन सौ अस्सी अस्सी गज लम्बे हैं और सर्वत्र ही मन्दिरमय हो रहे हैं । मन्दिरों के समूह को टोंक कहते हैं । टोंक में एक मुख्य मंदिर और दूसरे अनेक छोटे छोटे मंदिर होते हैं । यहां की प्रत्येक टोंक एक एक मजबूत कोट से घिरी हुई है । एक एक कोट में कई कई दर्वाजे हैं । इन में से कई कोट बहुत ही बडे बडे हैं । उन की बनावट बिलकुल किलों के ढंग की है । टोंक विस्तार में छोटी बडी हैं । अन्त की दशवीं टोंक सबसे बड़ी है । उस ने पर्वत की चोटी का दूसरा हिस्सा सब का सब रोक रक्खा है । ____ "पर्वत की चोटी के किसी भी स्थान में खडे होकर आप देखिए हजारों मन्दिरों का बड़ा ही सुन्दर, दिव्य और आश्चर्यजनक दृश्य दिखलाई देता है । इस समय दुनिया में शायद ही कोई पर्वत ऐसा होगा जिस पर इतने सघन, अगणित और बहु-मूल्य मन्दिर बनवाये गये हों। मन्दिरों का इसे एक शहर ही समझना चाहिए । पर्वत के बहिःप्रदेशों का सुदूर-व्यापी दृश्य भी यहां से बडा ही रमणीय दिखलाई देता है।" ____फाबर्स साहब 'रासमाला' में लिखते हैं कि-" शत्रुजय पर्वत के शिखर ऊपर से, पश्चिम दिशा की ओर देखते, जब आकाश निर्मल और दिन प्रकाशमान होता है तब, नेमिनाथ तीर्थंकर के कारण पवि For Private and Personal Use Only
SR No.020705
Book TitleShatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1917
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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