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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३० ) अमनोज्ञे च मनोज्ञे सजीव द्रव्ये अजीवद्रव्ये च । न करोति रागद्वेषौ पञ्चेन्द्रिय संवरो भणितः ॥ अर्थ- अमनोज्ञ अर्थात अप्रिय और मनोज्ञ अर्थात प्रिय एसे सजीव पदार्थ स्त्री पुत्रादिक तथा अजीव पदार्थ भोजन वस्त्र भूषण आदिक में रागद्वेष न करना पञ्चेन्द्रिय सम्बर है । अर्थात इन्द्रियों के विषय भोगों में रागद्वेष न करना इन्द्रिय सम्बर है। हिंसा विरइ अहिंसा असच्च विरइ अदत्त विरई य । तुरीयं अवंभविरई पंचम संगम्मि विरई य ॥३०॥ हिंसाविरतिरहिंसा असत्यविरतिरदत्त विरतिश्च । तुरीयमब्रह्मविरतिः पञ्चमं संगे विरतिश्च ॥ अर्थ-महाव्रत ५ हैं । अहिंसा महाव्रत अर्थात हिंसा का त्याग १ सत्यमहाव्रत अर्थात असत्य का त्याग २ अचौर्य महाव्रत अर्थात बिना दी हुवी वस्तु का नलेना३ ब्रह्मचर्य महाव्रत ४ और परिग्रह त्याग महाव्रत ५। साहति जं महल्ला आयरियं जं महल्ल पुव्बेहि । जं च महल्लाणि तदो महल्लयाइ तहेयाइ ॥३१॥ साधयन्ति यद् महान्तः आचरितं यद् महद्भिः पूर्वैः । यानि च महान्ति ततः महाव्रतानि ॥ अर्थ- जिन को बड़े पुरुष साधन करते हैं और जिन को पहले महत्पुरुषों ने आचरण किया है और जो स्वयं महान् हैं इससे इनको महाव्रत कहते हैं। वयगुत्ति मणगुत्ति इरिया समदि सुदाणणिक्खेवो । अवलोय भोयणाएहिंसाए भावणा होति ॥३२॥ बचोगुप्तिः मनोगुप्तिः ईयर्यासमितिः सुदाननिक्षेपः । अवलोक्य भोजनं अहिंसाया भावना भवन्ति । For Private And Personal Use Only
SR No.020699
Book TitleShatpahud Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundacharya
PublisherBabu Surajbhan Vakil
Publication Year1910
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P001
File Size7 MB
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