________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १५ )
निश्चल पाणि पात्रम् उपदिष्ट जिनवरेन्दै | एकोपि मोक्ष मार्गः शेषाश्वमार्गाः सर्वे ॥
अर्थ - वस्त्र को न धारण करना दिगम्बर यथा जात मुद्रा का धारण करना पाणि पात्र भोजन करना अर्थात् हाथ में ही भोजन रखकर लेना यही अद्वितीय मोक्ष मार्ग जिनेन्द्र देव ने कहा है । शेष सर्व ही अमार्ग हैं, मोक्ष मार्ग नहीं है।
जो संजमे सुसहिओ आरम्भ परिग्गहेसु विरओवि । सो होइ वंदणीओ ससुरासुर माणुसे लाए ॥ ११ ॥
यः संयमेषु सहितः आरम्भ परिग्रहेषु विरतः अपि । स भवति वन्दनीयः ससुरासुर मानुषे लोके ॥
अर्थ
-जो संयम सहित है और आरम्भ परिग्रह से विरक्त हैं वह ही इस सुर असुर और मनुष्यों करि भरे हुवे लोक में बन्दनी - क अर्थात् पूज्य होता है ।
जे वावीस परीसह सहति सत्तीस एहि संजुत्ता ।
ते होंति वंदनीया कम्म बखय निज्जए साहू ।। १२ ।।
ये द्वाविंशति परिषहाः सहन्ते शक्ति शतैः संयुक्ताः । ते भवन्ति वन्दनीयः कर्म्म क्षय निर्जरा साधवः ||
अर्थ- जो साधु अपनी सैकड़ों शक्तियों सहित बाईस २२ परीष को सहते हैं वह कर्मों को क्षय करने के अर्थ कर्मों की निर्जरा करते हैं अर्थात् उनके जो कर्मों की निर्जरा होती है उससे आगामी कर्म बन्धन नहीं होता है, वह साधु बन्दना करने योग्य हैं 1
अवसे साजे लिंगा दंसणं णाणेण सम्म संजुत्ता । चेलेण य परिगहिया ते भणिया इच्छणिज्जाय ||१३|| अवेशेषा जे लिङ्गिनः दर्शन ज्ञानेन सम्यक्संयुक्ताः । चेलेन च परिग्रहतिा ते भणिता इच्छा ( कार ) योग्याः ||
For Private And Personal Use Only