________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋ. मं. श्र.१अ.१ स्मारवाविशिष्टस्तु हि ह वै तच्छब्दविशिष्टान्यपिदैवतच्छंदांसि द्वित्रि चतुः पंच पद मूक्तमांजि यथासंख्यमनिरुक्ता संग्ल्याविंशतिरनादेशे विन्द्रोदेवता त्रिष्टुप्छन्दः प्रगाथावार्हताविंशिकाद्विपदाविराजस्तदर्धमेकपदाद्विपिदास्त्वृचः समामनन्य युक्ष्वन्या द्विपदैव मण्डलादिष्वाग्नेयमैन्द्रात्रिष्टुबन्तस्य मूक्तस्य शिष्टाजगत्य आदौ गायत्रं प्राग्घिरण्यस्तूपात् // 12 // गोधाघोषाविश्ववारा-12 पालोपनिषनिषत् // ब्रह्मजायाजुहूर्नामागस्त्यस्यस्वमादितिः // इन्द्राणीचेन्द्रमाताचसरमारोमशोवंशी // लोपामुद्राचनद्यश्चयपीनारीचशश्वती // श्रीाक्षासार्पराज्ञीवाकश्रद्धामेधाचदक्षिणा // रात्रीमूर्याचसावित्रीब्रह्मवादिन्यईरिताः // 13 // पादाअतिजगत्यांतुत्रयोद्वादशकाः परौ // अष्टको शकरीपादाःसप्तेवाष्टाक्षराः स्मृताः (क्षरइसपि)॥ अतिशाकरपादौद्वावादितःपोळशाक्षरौ // जागतश्चाष्टकावष्टि पादाःपोळशकास्त्रयः // अष्टकौचात्यष्टिपादोजागतौचाष्टक(का स्त्रयः // जागतश्चाष्टकश्वाथधृतिपादौतुजागतौ // पादास्त्रयोष्टकाश्चाथपोळशाक्षरएवच // अष्टकश्चाथातिधृतोद्वौपादौजागतीततः (जागतष्पोळशास्त्रयः) // त्रयोष्टकाजागतश्चतथाष्टाक्षरकावपि( रइत्यपि) // पर:सप्तकपादास्तुप्रसंगात्स्वयमीरिताः // 14 // इतिपरिभाषा // // 2 // For Private and Personal Use Only