________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. अ.४ // 14 // तस्यसखायस्तैआतिथ्यमानुषग्जुजोषत् 10 // 24 // महोजामिबन्धुता / वचौभिस्तन्मापितुर्गोतमादन्वियाय / त्वंनोअस्यवर्चसश्चिकिडिहोतर्यविष्ठसुक्रोदमूनाः 11 अस्वप्नजस्तरणयःसुशेवाअतन्द्रासोऽवृकाअश्रमिष्ठाः। ते पायव सध्यञ्चोनिषद्यागृतवनःपान्त्वमूर 12 येायोमामतेयंतैअनुपश्यन्तो अन्धंदुरितादरक्षनाररक्षतान्त्सुकृतौविश्ववेदादिप्सन्तइद्रिपानार्हदेभुः१३ त्वयां यंसधन्य स्त्वोतास्तवप्रीत्यश्यामवार्जान्। उभाशंासूदयसत्यताते ऽनुष्टुया कंणुह्यह्रयाण 14 अयातैअग्नेसमिर्धाविधेमप्रतिस्तोमैगस्यमनिंगृभाय / दहाशौरक्षसःपाह्यं रस्मान्द्रुहोनिदोमित्रमहोअवद्यात् 15 // 25 // इति शाकलसंहितायां तृतीयाष्टके चतुर्थोऽध्यायः // 4 // 28sssssssssss // 143 // For Private and Personal Use Only