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(६५)
जेम तुच्छ वैभववाळा - पुण्यहीन प्राणीओने चिन्तामणि रत्न सुलभ न ज होय - पुण्यहीन प्राणीओ चिन्तामणि रत्न प्राप्त करी शकता ज नथी, तेम गुणरूपी वैभवे करीने रहित जीवोने धर्मरत्न पण सुलभ न ज होय - निर्गुणी प्राणीओ धर्मरत्न प्राप्त करी शकता नथी ॥
जह दिट्ठीसंजोगो, न होइ जच्चधयाण जीवाणं । तह जिणमयसंजोगो, न होइ मिच्छंघजीवाणं ॥९६॥
जेम जन्मधी अंध अवतरेला जीवोने दृष्टिनो संयोग नथी - कोइ पण पदार्थने देखता नथी, तेम मिथ्यात्वे करी अंध थयेला जीवोने जिनमतनो संयोग नथीवीतराग भाषित मतनी प्राप्ति थती नथी. ॥ ९६ ॥
पंच्चक्मणंतगुणे, जिणिंदधम्मे न दोसलेसोवि । तहवि हु अन्नाणंधा, न रमन्ति कयावि तम्मि जिया ॥
* यथा दृष्टिसंयोगो, न भवति जात्यन्धानां जीवानाम् । तथा जिनमतसंयोगो, न भवति मिथ्याऽन्धजीवानाम् ॥ ९६ ॥ + प्रत्यक्षमनन्तगुणे, जिनेन्द्रधर्मे न दोषलेशोऽपि ।
तथापि खत्वज्ञानान्धा, न रमन्ते कदापि तस्मिन् जीवाः ॥९७॥ वै०
भ०
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