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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२) थकी विराम पामता नथी, एवा निर्लज्ज पुरुषोनी घिट्टाइने धिक्कारहो ! धिक्कार हो ! ॥ ७५ ॥ मा मा जंपह बहुयं, जे बद्धा चिक्कणेहि कम्मेहिं । ससि सि जाय, हिओवएसो महादोसो ॥ ७६ ॥ अयोग्य शिष्यो उपर कृपासागर गुरुमहाराजने करुणा आववाथी वारंवार उपदेश आपता जोइ, ते गुरु महाराज प्रति योग्य अने विनयी शिष्यो कहेछे- प्रभो ! कृपानिधान ! जेओए घणां चीकणां अने निकाचित कर्मों बांध्या छे- जेओ मगशेळीया पत्थरनी जेम नहीं पीगळे वा कठण हृदयवाळा छे, एवा आ अयोग्य प्राणीओने बहु उपदेश न आपो न आपो. कारण के-तेओने आप गमे तेटलो प्रतिबोध आपशो तो पण तेओ प्रतिबोध पामवाना नथी, एटलं ज नहीं पण, सर्पने जेम जेम दूध पाइये तेम तेम झेर वधेछे तेम अयोग्य प्राणीओने हितोपदेश केवळ महाद्वेषनी ज वृद्धि करे छे, माटे तेवा अयोग्य जीवोने उपदेश आपको व्यर्थ छे, ॥ ७६ ॥ * मा मा जल्पत बहुकं, ये बद्धाचिणैः कर्मभिः । सर्वेषां तेषां जायते, हितोपदेशो महाद्वेषः ॥ ७६ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020692
Book TitleSartham Bhavvairagya Shatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA M and Company
PublisherA M and Company
Publication Year1918
Total Pages75
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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