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प्रारम्भ
(४) जिनकी गाथाओं से अपने ग्रन्थ भरे हम पाते हैं, अफ्नी धर्म-महत्ता-दर्शन जिनके कर्म दिखाते हैं । अन्य-धर्म-अवलम्बी जनभी नित जिनका गुण गाते है, उन्हीं सूरि श्री हीर विजय का हम कुछ वृत्त सुनाते हैं ।
अकबर के विद्वान सभीथे पांच श्रेणियों में सुविभक्त, होर विजय जी जिनमें पहली श्रेणी में होतेथे व्यक्त । धर्म-शास्त्र उपदेश सभीम उनका प्रथम स्थान मिला, अब सुनिए यह महत सुमनथा कैसे विकसित हुआ खिला।।
जहां हुआ उस महापुरुष का जन्म मोद प्रद मनोऽभिराम, धन्य धन्य धरणी तल परहै वह पालनपुर मंगल-धाम । उसकी ही सुखदा मिट्टीमें वे पोषित हो बड़े हुए, पूर्णतया पर जब कि न वे थे पैरों पर भी खड़े हुए
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