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(४६)
+ स्वर- वसु- कन्या रवि इसा संवत सुख कर की यह है बात, जब वे पाटन की भू'पावन करने पहुंच गये गुजरात | शान्तिचन्द्र ने शाह हृदय को इधर दिया अतिशय सन्तोष, प्रशस्ति में अकबर की उसने पुस्तक रची कृपा रसकोष || ( ४७ ) जिस में अकबर की उदारता दया आदि का था उल्लेख, हर्षित और प्रफुल्लित अकबर स्वयं होगए जिसको देख, शान्तिचन्द्र के मुख से वह अकबर सुन प्रति संतुष्ट हुआ, जैन धर्म प्रति और अधिकतर प्रेम भाव दृढ़ पुष्ट हुआ ।। (४८)
कुमार पाल के पाट नगर में * वाचक ने जाकर सुखकार, हीर विजयजी सूरीश्वर के दर्शन का जब किया विचार । तब जब शांन्ति चन्द्र ने तज कर नगर फतहपुर किया प्रयान, कबर ने हिंसा प्रतिबन्धक उनको एक दिया फ़रमान ॥
१५८७ * शान्तिचन्द्र उपाध्याय |
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