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शावर तन्त्र शास्त्र । तन्त्र एक ऐसा कल्पवृक्ष है, जिससे
छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी कामनाओं की पूर्ति सुलम है। श्रद्धा और विश्वास के सम्बल पर लक्ष्य की ओर बढ़ने वाला तन्त्रसाधक अतिशीघ्र निश्चित लक्य को प्राप्त कर लेता है।
भावों को प्रकट करने के साधनों का आदिस्रोत यन्त्र-तन्त्र हो है । यन्त्रतन्त्र के विकास से ही अंक और अक्षरों की सृष्टि हुई है । अतः रेखा, अंक एवं अक्षरों का मिला-जुला रूप तन्त्रों में व्याप्त हो गया। साधकों ने इष्टदेव की अनकम्पा से बीज-मन्त्र तथा मन्त्रों को प्राप्त किया और उनके जप से सिद्धियाँ पायौं तो यन्त्रतन्त्र में उन्हें मो अंकित कर लिया।
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