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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शावर तन्त्र शास्त्र | २७१ पात्रता विचार — मन्त्र गणना करते समय पर्यावरण का ध्यान भी रखना होगा पर्यावरण का प्रभाव बड़ा महत्वपूर्ण होता है। यदि आप चील Share और गीध आमन्त्रित करने की इच्छा करते हैं तो एक पशु के शव को अपने आस-पास कहीं डाल दीजिये और देखिये कितने बिन बुलाये मेहमान पधारते हैं ? इसी प्रकार जब आपकी इच्छा बगुले आदि जल-चरों को एकत्र करने की हो तो एक सुन्दर सा तालाब बना डालिये । तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार के देवता का आह्नान करना हो उसी प्रकार का वातावरण बना लेने पर सिद्धि में आसानी हो जाती है। यह वातावरण दो तरह से बनाया जाता है - वाह्य और आन्तरिक । वाह्य वातावरण से तात्पर्य है साधक के आस-पास का वातावरण जैसे वेताल साधना के लिए उपयुक्त स्थल श्मशान होता है। आन्तरिक वातावरण से तात्पर्य है अपने शरीर को देवता के उपयुक्त बनाना, जिसे 'पात्रता' प्राप्त करना कहते हैं। वाह्य वातावरण को उपयुक्त बनाने के ढंग को 'कर्म काण्ड' कहा जाता है । आन्तरिक वातावरण वाली बात से साधक के मानसिक स्तर का प्रदर्शन होता है, जिसे 'चरित्र' कहते हैं । इसी आधार पर व्यक्ति किसी कार्य के लिए सुपात्र या कुपात्र कहलाता है । वर्ण - विचार - जिस मन्त्र में चार बीज अक्षर हों, वह ब्राह्मण मन्त्र कहलाता है, अर्थात् वह ब्राह्मण के उपयुक्त मन्त्र हैं । इसी अर्थ में तीन अक्षर वाला क्षत्रिय मन्त्र है, दो अक्षरों वाला वैश्य मन्त्र, और एक अक्षर वाला शूद्र मन्त्र होता है । 1 ब्राह्मण व्यक्ति क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि के मन्त्र ग्रहण कर सकता है, परन्तु क्षत्रिय या वैश्य आदि ब्राह्मण मन्त्र ग्रहण नहीं कर सकते क्योंकि ब्राह्मण मन्त्र के अक्षर क्षत्रिय शूद्रादि मन्त्रों से अधिक होते हैं । इसी प्रकार वैश्य क्षत्रिय मन्त्र का प्रयोग नहीं कर सकता । शूद्र मन्त्र का प्रयोग कोई भी कर सकता है । पौलस्त्य मन्त्रों में कोई बीज अक्षर नहीं होता अतः शूद्र के लिए भी उपयोगी है। प्रणव मन्त्र “ॐ” एक बीज अक्षर मन्त्र है परन्तु शूद्र के लिये उपयुक्त नहीं है। वैसे भी सांसारिक सुख चाहने वाले गृहस्थी व्यक्तियों के लिए प्रणव मन्त्र प्रतिकूल सिद्ध होता है। गृहस्थी टूटने लगती है। जबकि संन्यासी के लिए प्रणव से बढ़ कर दूसरा मन्त्र नहीं है स्त्री वर्ग को भी प्रणव मन्त्र या प्रणव युक्त मन्त्रों से बचना चाहिये । इसी प्रकार अजपा मन्त्र 'हंस' जिन मन्त्रों के अन्त में स्वाहा हो, श्रीं (लक्ष्मी) For Private And Personal Use Only
SR No.020671
Book TitleShavar Tantra Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Dikshit
PublisherDeep Publications
Publication Year1994
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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